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४, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वैयणदव्वविहाणे सामित्तं
[१६१ अवणिदे हेट्टवीर' रूवाहियपक्खेवरूवाणि लद्धं च होदूण चिट्ठदि । एदेण उवरिमविरलणम्हि भागम्हि घेप्पमाणे हेडिमरूवाहियपक्खेवरूवाणि उवरिमगुणहाणीए गुणगाराणि होति । पुणो हेट्टवरिमलद्धं गुणहाणी च अण्णोणं ओवट्टिज्जमाणे हेट्ठा एगरूवं उवरिभागहारमेत्ताणि । पुणो रूवाहियपक्खेवरूवेसु एगरूवमवणिदे भागहारमेत्तं ओसरदि, अवसेसपक्खेवरूवाणि भागहारेण गुणिदे लद्धस्सद्ध होदि । पुणो हेट्ठिमछेदं ओवट्टणरूवाणि ताणि लद्धं पक्खेवरूवाणि एगरूवं च अणुवलंभाणि विरलेदूण लद्धस्सद्धं लद्धमेत्तविरलिदरूवाणं दिज्जमाणे अद्धद्धरूवं पावदि । पुणो ओसरिदभागहारमेत्तरूवाणि दुगुणभागहारमेत्तरूवाणं दिज्जमाणे एदाणं पि अद्धद्धरूवं पावदि । पुणो रूवाहियपक्खेवरूवाणि दुगुणभागहारेणूणाणि अणादेयाणि चट्ठति । पुणो तेसि पि दादुमिच्छिय एगरूवधरिदं सयलविरलणमेत्तखंडाणि कादूण तत्थ दुगुणभागहारेणूणरूवाहियपक्खेवरूवमेत्ताणि खंडाणि घेत्तूण अणादेयरूवेसु रूवं पडि दादूण एवं सेसरूवधरिदेसु वि घेतूण समकरणं कादव्वं । एवं कदे रूवं पडि अद्धरूवं ओवट्टणरूवमेत्तखंडाणि कादूण दुगुणभागहारेणब्भहियलद्धमत्तखंडाणि होति । जदि दुगुणभागहारेणूणरूवाहियपक्खेवरूवमेत्तखंडाणि होति तो अद्धरुवं होदि । ण च एत्तियमस्थि । तेण
करना चाहिये। कम करनेपर नीचे व ऊपर एक अधिक प्रक्षेप रूप और लब्ध होकर स्थित होता है। इसका उपरिम विरलन राशिम भाग देनेपर नीचेके एक अधिक प्रक्षेप रूप उपरिम गुणहानिके गुणकार होते हैं। पुनः अधस्तन व उपरिम लब्ध और गुणहानि, इनको परस्परमें अपवर्तित करनेपर नीचे एक रूप ऊपर भागहार मात्र होते हैं। पुनः एक अधिक प्रक्षेप रूपोंमेंसे एक रूपको कम करनेपर भागहार मात्र कम होता है। शेष प्रक्षेप रूपोंको भागहारसे गुणित करनेपर लब्धका आधा होता है। पुनः अघस्तन छेदको, उन अपवर्तित रूपोंको, लब्धको, प्रक्षेप रूपों व एक रूपको अनुपलभमान विलित करक लब्धके अधे भागको लब्ध मात्र विरलित रूपोंके ऊपर देनेपर आधा आधा रूप प्राप्त होता है (१)। पुनः अलग किये गये भागहार मात्र रूपोंको दुगुणे भागहार प्रमाण रूपोंके ऊपर देनेपर इनके प्रति भी आधा आधा रूप प्राप्त होता है । पुनः एक अधिक प्रक्षेप अंक दुगुणे भागहारसे कम होकर अनादेय स्थित रहते हैं। फिर उनके भी देनेकी इच्छा करके एक रूपपर रखी हुई राशिके समस्त विरलन राशि प्रमाण खण्ड करके उनमें से दुगुणे भागहारसे हीन एक अधिक प्रक्षेप रूपों प्रमाण खण्डोंको ग्रहण करके अनादेय रूपोंमेंसे प्रत्येक रूपके प्रति देकर. इसी प्रकार शेष रूपधरितोंमेंसे भी ग्रहण करके समकरण करना चाहिये । ऐसा करने पर प्रत्येक अंकके प्रति अर्ध रूपके अपवर्तन रूपों प्रमाण खण्ड करके दुगुणे भागहारसे अधिक लब्ध प्रमाण खण्ड होते हैं। यदि दुगुणे भागहारसे हीन एक अधिक प्रक्षेप रूपों प्रमाण खण्ड होते हैं तो अर्ध रूप होता है। परन्तु इतना
१ अप्रतौ ' आवणिदे हेहवरिम. ' काप्रतौ ' आवणिदे हेहवरि ' इति पाठः।।
२ अप्रतौ ' अणुवलंभाणि', काप्रती · अणुवलंभणाणि', ताप्रती · अणुवलग्गाणि ' इति पाठः। छ, वे. २१.
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