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१,२४, ३२ ] वेयणमहाहियारे वेयणदच्यविहाणे सामित्तं
____एत्थ जधा पक्खेवरूवाणि हाइदृण चडिदद्धाणं चेव सुद्धमागच्छदि तधा परूवणं कस्सामो । तं जहा- लद्धभागहारं वग्गिय दुगुणिय गुणहाणिअद्धाणे भागे हिदे पक्खेवरूवाणि आगच्छंति । तेसिं ठवणा | ९११ ।। पुणो दुगुणिदपक्खेवरूवेहि अणवहिदभागहारं गुणिदे अद्धपमाणं होदि । पुणो एगरूवे पक्खित्ते चडिदद्धाणं होदि । तस्स ठवणा | २ | २ ।। दुगुणिदअणवहिदभागहारेण रूवाहिएण पक्खेवरूवाणि गुणिय पच्छा एगरूवे पक्खित्ते परखेवरूवसहिदचडिदद्धाणं होदि । एदस्स आगमणटुं गुणहाणीए भागहारो पलिदोवमवग्गसलागाणं बेत्तिभागो । एदस्स ठवणा |४|२॥ एवं होदि त्ति कादूण पक्खेवरूवम्हि एगरूवधारदे भागे हिदे अणवहिदभागहारो दुगुणो एगरूवेण एगरूवस्स असंखेज्जीदभागेण अहियो आगच्छदि । पुणो तं विरलिय उवरिमेगस्वधरिदं समखंडं करिय दिण्णे पक्खेवरूवपमाणं पावदि । तमुवरिमरूवधरिदे अवणिदे अवणिदसेसं चडिदद्धाणं होदि । हेट्ठिमविरलणरूवूणमेत्तपक्खेवरूवाणं जदि एगा अवहारपक्खेवसलागा
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यहां जिस प्रकारसे प्रक्षेप अंक हीन होकर आगेका विवक्षित अध्वान ही शुद्ध आता है उस प्रकारसे प्ररूपणा करते हैं । यथा- लब्ध भागहारका वर्ग करके दुगुणित कर गुणहानिअध्वानमें भाग देने पर प्रक्षेप अंक आते हैं । उनकी स्थापना ९९१ । फिर दुगुणित प्रक्षेप अंकोंसे अनवस्थित भागहारको गुणित करने पर अध्वान का प्रमाण होता है। पुनः उसमें एकका प्रक्षेप करनेपर आगेका विवक्षित अध्वान होता है। उसकी स्थापना- (मूलमें देखिये)। दुगुणित अनव स्थित भागहार में एक मिलाकर उससे प्रक्षेप रूपोंको गुणित कर पश्चात् उसमें एक अंक मिलानेपर प्रक्षेपरूप सहित आगेका विवक्षित अध्वान होता है । इसके निकालनेके लिये गुण हानिका भागहार पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके दो त्रिभाग मात्र है। इसकी स्थापना ४२ ऐसी है, ऐसा मानकर एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त प्रक्षेप रूपमें भाग देने पर एक और एकके असंख्यातवें भागसे अधिक दूना अनवस्थित भागहार आता है। पश्चात् उसका विरलन कर उपरिम एक विरलन अंकक प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देने पर प्रक्षेप रूपाका प्रमाण प्राप्त होता है। उस विरलनके प्रति प्राप्त द्रव्यमसे कम करने पर शेष आगेका विवक्षित अध्वान हे ता है। अधस्तन विरलनमें से एक कम करके तन्मात्र प्रक्षेप रूपोंकी यदि एक अवहारप्रक्षेप
, अस्तौ |
| कापतौ।
ताप्रती | ७ |
मप्रती | ९.९१ इति पाठः ।
२ अ-काप्रत्यो।
ता
२-.९-
१
०
हात पाल ।
। इति पार
|९९२२९
, तापता २..९.१ ।
३ अप्रतौ
काप्रती
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२ इति पाठः । ४ मप्रतौ 'रूवधरिदेसु अवणिदेस
अवाणिदे सेसं इति पाठः ।
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