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१५८ छक्खंडागमे वैयणाखंड
[४, २, ४, ३३. __ एवमुवरिमरूवाणि णव दस एक्कारस-बारसादीणि उपाएदव्याणि । णवीर दुगुणिदरूवेहि गुणहाणिमोवट्टिय लद्धस्स वगमूलमणवहिदभागहारो होदि त्ति सव्वत्थ वत्तव्वं । जहण्णपरित्तासंखेजमेत्तरूवाणि केत्तियमद्धाणं गंतूण उप्पज्जति ति उत्ते दुगुणजहण्णपरित्तासंखेज्जेण भागहार गुणिय रूवे पक्खित्ते जो रासी उप्पज्जदि सो चडिदद्धाणं । सेसमेत्थं जाणिय वत्तव्यं । एवमावलिय-पदरावलियादिरूवाणमुप्पत्ती जाणिदूग वत्तव्वा । एवमोवणरूवेसु वड्डमाणेसु भागहारे च झीयमाणे केत्तियमद्धाणमुवरि चडिदूण बद्धसमयपबद्धसंचयस्स पलिदोवमं भागहारो होदि त्ति उत्ते पलिदोवमवग्गसलागाणं बेत्तिभागेण सादिरेगेण गुणहाणिम्हि ओवट्टिदे लद्धं रूवाहियमेत्तं कम्मट्टिदिपढमसमयादो उवरि चडिदूण बद्धदव्वसंचयस्स पलिदोवमं भागहारो होदि । तं जहा- पलिदोवमेण चरिमणिसेगभागहारे
ओवडिदे पक्खेवरूवसहिदं चडिदद्धाण होदि, पलिदोवमवग्गसलागाणं सादिरेयबेत्तिभागेहि गुणहाणिअद्धाणे भागे हिदे लद्धरूवाहियचडिदद्धाणसमुप्पत्तीदो । तेण पलिदोवमवग्गसलागाणं बेत्तिभागं विरलिय गुणहाणिअद्धाणं समखंडं करिय दिण्णे विरलणरूवं पडि पक्खेवरूवसहिदं चडिदद्धाणं पावदि।
- इसी प्रकार नौ, दस, ग्यारह और बारह आदि उपरिम अंकोंको उत्पन्न कराना चाहिये । विशेष इतना है कि दुगुणित अंकों का गुणहानिमें भाग देनेपर
जो लब्ध हो उसका वर्गमूल अनवस्थित भागहार होता है, ऐसा सर्वत्र कहना चाहिये। कितना अध्वान जाकर जघन्य परीतासंख्यात प्रमाण अंक उत्पन्न होते हैं, ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि दूने जघन्य परीता संख्यातसे भागहारको गुणित करके और उसमें एकका प्रक्षेप करनेपर जो राशि उत्पन्न होती है यह आगेका स्थान है। शेष यहां जानकर कहना चाहिये । इसी प्रकार आवली और प्रतरावली आदि रूपोकी उत्पत्तिको जानकर कहना चाहिये। इस प्रकार अपवर्तन रूपोंके बढनेपर और भागहारके क्षीयमान होने पर कितने स्थान आगे जाकर बांधे गये समयप्रबद्धके संचयका पल्योपम भागहार होता है, ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं कि पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके साधिक दो त्रिभागका गुणहानिमें भाग देने पर जो लब्ध हो उसमें एक
प्राप्त हुई राशि मात्र कर्मस्थितिके प्रथम समयसे आगे जाकर बांधे हुए द्रव्यका पल्योपम भागहार होता है । यथा - पल्योपम द्वारा अन्तिम निषेकके भागहारको अपवर्तित करनेपर प्रक्षेप रूपसे सहित आगेका स्थान होता है, क्योंकि, पल्योपमकी धर्गशलाकाओंके साधिक दो त्रिभागोंका गुणहानिअध्यानमें भाग देनेपर लब्ध हुई राशिसे एक अधिक आगेका विवक्षित स्थान उत्पन्न होता है। इसीलिये पल्योपमकी घर्गशलाकाओंके दो त्रिभागोंका विरल न करके गुणहानिअध्वानको समखण्ड करके देनेपर विरलन राशिके प्रत्येक एकके प्रति प्रक्षेप अंक सहित आगेका विवक्षित अध्वान प्राप्त होता है।
1 अप्रती ' मेत्त' इति पाठः। २ प्रतिषु 'एद-' इति पाठः । ३ मप्रतौ ' रूवाणिमुत्पत्ती ' इति पा।
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