________________
१, ३, ४, ३२.] यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त विक्खंभं तीहि खंडिय | ४|२३| पुध पुध विक्खंभायामसंवग्गं काऊण उव्वरिदविसेसेसु
तिण्णि विसेसे घेत्तूण पक्खित्ते तिगुणरूवाहियगुणहाणिमेत्तगोवुच्छविसेसा तिण्णिरूवुप्पत्तिणिमित्ता होति । एदेसु रूवेसु चडिदद्धाणम्मि पक्खित्तेसु ओवट्टणरूवपमाणं होदि । तं चेदं | २८ । संपहि पुधद्धाणे' आणिज्जमाणे पुव्वं व किरिया कायव्वा । णवरि करणिगच्छो एसो [...]। एदं रूवाहियं चडिदद्धाणं होदि ।
तीनसे खण्डित कर ४ ३४ तथा विष्कम्भ और आयामका अलग अलग संवर्ग करके शेष बचे हुए विशेषोंमें [९६, ९६ : ६ = १६, १६ = ४, ९६ : ४ = २४ = ४ x ६, २४ + १ = २५ स्थान, २५+३ = २८ अपवर्तन अंक, ९ से ३३ अंक तकका जोड़ ५२५, (२५ ४९) + (१२ x २४) = ५१३; ५२५ - ५१३ = १२ बचे हुए विशेष ] से तीन विशेषों को ग्रहण करके मिलानेपर तीन अंकोंकी उत्पत्तिके निमित्तभूत एक अधिक गुणहानिले तिगुने गोपुच्छविशेष होते हैं। फिर इन अंकोंको जितने स्थान आगे गये हैं उनमें मिलानेपर अपवर्तन रूप अंकोंका प्रमाण होता है । वह यह है २८ । अब पृथक् अध्वानको लाते समय पहले के समान क्रिया करनी चाहिये । इतनी विशेषता है कि यहांपर करणिगत गच्छका प्रमाण यह है V२१७-६। यह एक अधिक आगेका स्थान होता है।
विशेषार्थ - एक अधिक गुणहानिके तिगुने प्रमाण गोपुच्छविशेषसंचयका स्थान - एक अधिक गुण हानि ८ + १ = ९ का तिगुना १ ४ ३ = २७, २७ x ८ = २१६, २१६ + १ = २१७, २१७ का वर्गमूल V२१७ यह करणिगत है: V२२७ में से १ घटाकर आधा करनेपर ४२१७ १ गच्छका प्रमाण आता है, और एक अधिक करनेपर आगेका स्थान होता है । V२१७ १ का संकलन लाने के लिये इस राशिको
दो अगह अलग अलग स्थापित करके उनमेंसे एक राशिमें एक जोड़कर V२१७.१ भाधा करनेपर ४२९७ १ आता है। इससे दुप्रतिराशिको गुणा करनेपर २४७०४९
३७ . २१४-2 - ४४०८९ १ - २१७ -२४६ - ७॥
१ अ-काप्रसोः फुदद्धाणे 'इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org