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१२८ ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[ १, २, ४, ३२. भागे हिदे इच्छिदणिसेगो आगच्छदि | ३८४ | । उवरि जाणिदूण भागहारो वत्तव्यो ।
विदियगुणहाणिपढमणिसेयपमाणेण सव्वदव्वं तिण्णिगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदिः। तं जहा- पढमगुणहाणि-पढमणिसेयादो बिदियगुणहाणि-पढमणिसेगो अद्ध होदि त्ति दिवड्डखेत्तं ठविय मज्झम्मि दोफालीयो करिय - एगफालीए सीसे बिदियफालिं संधिय ठविदे तिण्णिगुणहाणिआयाम-बिदियगुणहाणिपढमणिसेगविक्खंभखेत्तं होदि । अधवा एगगुणहाणि चडिदो त्ति एगरूवं विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थरासिणा दिवढे गुणिदे तिण्णिगुणहाणीओ होति |२४|| एदेहि सव्वदव्वे भागे हिदे बिदियगुणहाणि-पढमणिसेगो लब्भदि । २५६ | । उवरि जाणिय वत्तव्यं ।
तदियगुणहाणिपढमणिसेगेण सव्वदव्वं छगुणहाणिकालेण अवहिरिज्जदि, बिदियगुणहाणिपढमणिसेयविक्खंभं तिण्णिगुणहाणिआयदखेत्तं मज्झम्मि दोफालीयो करिय सीसे संघिदे
६१४४ १६ = ३८४ । इसी प्रकार आगे जानकर भागहार कहना चाहिये ।
द्वितीय गुणहानिके प्रथम निषेकके प्रमाणसे सब द्रव्य तीन गुणहानिस्थानान्तर. कालसे अपहृत होता है । यथा-प्रथम गुणहानिके प्रथम निषेकसे द्वितीय गुणहानिका प्रथम निषेक आधा है । अत एव डेढ़ गुणहानि मात्र क्षेत्रको अर्थात् डेढ़ गुणहानि प्रमाण आयामवाले व प्रथम गुणहानिके प्रथम निषेक प्रमाण विस्तारवाले क्षेत्रको स्थापित कर मध्यमें दो फालियां करके (संदृष्टि मूलमें देखिये) एक फालिके शीर्षपर द्वितीय फालिको जोड़कर स्थापित करनेपर तीन गुणहानि आयत और द्वितीय गुणहानिके प्रथम निषेक प्रमाण विस्तृत क्षेत्र होता है।
___ अथवा एक गुणहानिके आगे गये हैं अतः एक अंकका विरलन कर दुगुणा करके परस्पर गुणा करनेपर जो प्राप्त हो उससे डेढ़ गुणहानिको गुणित करनेपर तीन गुणहानियां होती हैं (१४२४ १२ = २४)। इनका सब द्रव्यमें भाग देनेपर द्वितीय गुणहानिका प्रथम निषेक प्राप्त होता है- ६१४४ : २४ = २५६ । आगे जानकर कहना चाहिये।
तुतीय गुणहानिके प्रथम निषेकसे सब द्रव्य छह गुणहानियोंके कालसे अपहृत होता है, क्योंकि, द्वितीय गुणहानिके प्रथम निषेक प्रमाण विस्तारवाले और तीन गुणहानि भायत क्षेत्रकी मध्य में दो फालियां करके शीर्ष में जोड़ देनेपर छह गुणहानि मात्र
१ प्रतिषु
एवंविधात्र संदृष्टिः ।
२ अ-काप्रत्योः ‘सीरसे', आप्रतौ ' सरिते' इति पाठः।
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