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४, २, ४, २१. देशणमहाहियारे वेयपदविणे सामित्त
[१४१ दियड्ढगुणहानि गणिदे दिवड्ढकम्मट्ठिदी उप्पज्जदि । दोरूवारदेण गुणिदे तिण्णिकम्मद्विदीओ उप्पज्जति । एवं गंतूण जहणपरित्तासंबेज्ज-ब-त्तिभागभेत्तरूवधरिदरामिणा गुणिदे असंखेज्जकम्मट्ठिदीओ उप्पज्जति । एवं णदव्यं जाव णिस्संदेहो साहुजणो जादो त्ति । तेण चरिमणिसे गभागहारो अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो ति सिद्धं । अवहारपरूवणा गदा ।
जधा अवहारकालो तधा भागाभागं, सव्वसियाणं सव्वदव्वस्स असंखेजदिभागत्ताद।। भागाभागपरूवणा गदा।
सव्वत्थोवो चरिमणिसेगो ।९।। एटमणिसेगो असंखेज्जगुणो । ५२२ ।। को गुणगारो ? किंचूगण्णोन्मत्थरासी | ५१२ । अपढम-अचारमदव्बमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? एगरूवेण एगरूवस्स असंखज्जाद भागण च परिहीणदिवड्गुणहाणी गुणगारो | ५७७९ । कुदो ? पढमणिले यस्स गुणगारम्मि जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो चरिमणिसेगाहियपटमणिसेगस्स किं लभामो त्ति पमाणेणिच्छाए ओवट्टिदाए । ५२१ | एगरूवस्स
स्थिति उत्पन्न होती है १२४ ६ = ७२ । दो विरलन अंकोंके प्रति प्राप्त राशिसे डेढ़ गुणहानिको गुणित करने पर तीन कर्मस्थितियां उत्पन्न होती हैं १२४ १२ = १४४ । इस प्रकार जाकर जघन्य परीतासंख्यातके दो तीन भाग मात्र विरलन अंकोंके प्रति प्राप्त राशिसे डेढ़ गुणहानिको गुणित करनेपर असंख्यात कर्मस्थितियां उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार साधजनके सन्देह रहित हो जाने तक ले जाना चाहिये। इसलिये अन्तिम निषेकका भागहार अंगुलका असंख्यातवां भाग है, यह सिद्ध होता है । अवहारप्ररूपणा समाप्त हुई।
जिस प्रकार अवहारकाल है उसी प्रकार भागाभाग है, क्योंकि, सब निषेक सब द्रव्यके असंख्यातवे भाग मात्र हैं । भागाभागप्ररूपणा समाप्त हुई।
अन्तिम निषेक (९) सबसे स्तोक है । प्रथम निषेक (५१२) उससे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? गुणकार कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशि है-६४ - ७१-५१२। उससे अप्रथम-अचरम द्रव्य असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ?
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एक और एकके असंख्यातवें भागसे हीन डेढ़ गुणहानि गुणकारह-७-११,१४०। इसका कारण यह है कि प्रथम निषेकके गुणकारमें यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो अन्तिम निषेकसे अधिक प्रथम निषेकके गुणकारमें कितने अंकोंकी हानि पायी जायगी, इस प्रकार प्रमाण राशिसे इच्छा राशिको भाजित करनेपर एकका असंख्यातवां भाग अधिक
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