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४, २, ४, ३२.} वेयणमहाहियारे वेगणदव्वविहाणे सामित्त
। १३३ वट्टिदे एगरूवस्स असंखेज्जीदभागो आगच्छदि, दिवढगुणहाणीहितो मोहणीयअण्णोण्णब्भत्थरासीए असंखेज्जगुणत्तादो । एद पढमणिसेगस्स असंखेज्जदिमागं पढमणिसेगद्धम्मि अवणिदे मोहणीयस्स सादिरेयदिवड्डगुणहाणिमेत्तपढमाणिसेया होति । एगरूवस्स असंखेज्जदिभागो अवणिज्जमाणो संदिट्ठीए एसो | २१ । अवणिदे सेसमेदं | १९७४ ।
___णाणावरणीयपढमणिसेयपमाणेण सव्वदवे अवहिरिज्जमाणे किंचूणदिवड्वगुणहाणिट्ठाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । तं कधं ? सण्णिपंचिंदियपज्जत्तसव्वसंकिलिट्ठउक्कस्स. जोगमिच्छाइट्ठी तीस सागरोवमकोडाकोडिट्ठिदि बंधमाणो तम्हि समए आगदकम्मपरमाणूणमद्धं चरिमगुणहाणिव्वेणब्भहियं पढमगुणहाणीए णिसिंचदि । बिदियादिगुणहाणीसु चरिमगुणहाणिदव्वेणूणमद्धं णिसिंचदि । तेण विदियादिगुणहाणिदवम्मि चरिमगुणहाणिव्वे पक्खित्ते पढमगुणहाणिवपमाणं होदि ।
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आता है, क्योंकि, डेढ़ गुणहानिसे मोहनीयकी अन्योन्याभ्यस्त राशि असंख्यातगुणी है। इस प्रथम निये के असंख्यातवें भागको प्रथम निषेकके अर्ध भागमेसे कम कर देनेपर मोहनीयके साधिक डेढ़ गुणहानि मात्र प्रथम निषेक होते हैं । कम किया गया एकका असंख्यातवां भाग संदृष्टि में यह है-२५ । इसको सार्ध डेढ़ गुणहानिमेंसे कम करनेपर शेष यह रहता है- १९७४ ।
उदाहरण- कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशि ११२, अन्तिम गुणहानिकी अपेक्षा कुछ कम डेढ़ गुणहानि १००, १००४९ : ५१२४९ = १००४९४,९२२-१०० २५, 1-२८- ३२८, २+ ३९८ - १९५८ साधिक डेढ़ गुणहानि । सब द्रव्यमें इतने प्रथम निषेक होते हैं।
शानावरणीयके प्रथम निषेकके प्रमाणसे सब द्रव्यको अपहृत करनेपर कुछ कम डेढ़ गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है। वह कैसे ? संशी, पंचेन्द्रिय, पर्याप्त सर्वसंक्लिष्ट व उत्कृष्ट योग युक्त मिथ्यादृष्टि जीव तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपम प्रमाण स्थितिको बांधता हुआ उस समयमें आये हुए कर्मपरमाणुओंमेंसे अन्तिम गुणहानिके द्रव्यसे अधिक अर्ध भागको प्रथम गुणहानिमें देता है। द्वितीयादिक गुणहानियों में अन्तिम गुणहानिके द्रव्यसे हीन अर्ध भागको देता है। इसीलिये द्वितीयादिक गुणहानियाके द्रव्यमें अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको मिलानेपर प्रथम गुणहानिके द्रव्यका प्रमाण होता है।
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१ प्रतिषु 'सादिरेयाणि दिवई' इति पाठः ।
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