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१, २, ४, ३२.) वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामितं
[१३५ समासेण समकरणं कादव्वं । एवं कदे रूवूणगुणहाणिअद्धमत्ता गोवुच्छविसेसा जादा | ८ ८ ८४ । गुणहाणिअद्धमेत्तगोबुच्छविससेसु दुरूवूणगुणहाणिअद्धमत्तगोउच्छविसेसे घेत्तूण तत्थ एगेगगोवुच्छविससे दोरूऊणगुणहाणिअद्धमत्तगोवुच्छपुंजेसु पक्खित्तेसु दुरूवूणगुणहाणिअद्धमेत्ता चरिमाणिसेगा होति । पुणो रूवाहियगुणहाणिमेत्तगोवुच्छविसेसेसु जदि एगो चरिमणिसेगो लब्भदि तो उबरिदेगगोवुच्छविसेसम्मि किं लभामो त्ति सरिसमवणिय पमाणेणिच्छाए ओवहिदाए एगरूवरस असंखज्जदिभागो आगच्छदि १।३ | एदम्मि
गुणहाणिमेत्तचरिमणिसेगेसु पक्खित्ते किंचूणदिवड्डगुणहाणिमेत्तचरिमणिसेगा हेति ९/११ ।।
एदमेवं चेव ह्रविय पुणो अण्णोणब्भत्थरासिं विरलेदूण पढमणिसेगं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि गोवुच्छविसेसूणचरिमणिसेगो पावदि । पुणो हेट्ठा गुणहाणिं विरलिय एगरूवधरिदं दादूण समकरणं करिय परिहाणिरूवेसु तेरासियकमेण आणिदेसु रूवाहियगुणहाणिणोवट्टिदअण्णोण्णभत्थरासिमे ताणि होति । एत्थ णाणावरणादीणमेगरूवस्स असंखेज्जदिभागो
प्रकार करनेपर एक कम गुणहानिके अर्ध भाग मात्र गोपुच्छविशेष होते हैं - ८, ८, ८, ४ । गुणहानिके अर्ध भाग प्रमाण गोपुच्छविशेषों में से दो कम गुणहानिके अर्थ भाग मात्र गोयुच्छविशेषोंको ग्रहण कर उनमें से एक एक गोपुच्छविशेषको दो कम गुणहानिके अर्ध भाग मात्र गोपुच्छयुंजोंमें मिलानेपर दो कम गुणहानिके अर्ध भाग मात्र अन्तिम निषेक होते हैं। पुनः एक अधिक गुणहानिके बराबर गोपुच्छविशेषामें यदि एक अन्तिम निषेक पाया जाता है तो बचे हुए एक गोपुच्छविशेष में क्या पाया जायगा, इस प्रकार सदृशका अपनयन करके प्रमाणसे इच्छाको अपवर्तित करने पर एकका असंख्यातवां भाग आता है-2। ३२ इसे गुणहानि मात्र अन्तिम निषेकों में मिलाने पर कुछ कम डेढ़ गुणहानि मात्र अन्तिम निषेक होते हैं-८+३१ = ११३ । इसको इसी प्रकार स्थापित करके पश्चात् अन्योन्याभ्यस्त राशिका विरलन करके प्रथम निषेकको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति
से हीन अन्तिम जिषक प्राप्त होता है। पश्चात् नीचे गुणहानिका विरलन करके ऊपर एक विरलनके प्रति प्राप्त द्रव्यको देकर समीकरण करके परिहीन रूपोको त्रैराशिककमसे लानेपर चे एक अधिक गुणहानिसे अपवर्तित अन्योन्याभ्यस्त राशि मात्र होते हैं। यहां ज्ञानावरणादिकका एकका असंख्यातवां भाग आता है, क्योंकि, उनकी
१ प्रतिघु उब्विरिदेविदेग'; मप्रतीउविहिदेग' इति पाठः । २ प्रतिषु | ९ ३ | इति पाठ :।
३ प्रतिषु | ९| ११ ( इति पाठः ।
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