Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
४, २, ४, २८.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
[८७ रूवूणमेत्तपक्खेवेसु समुदिदेसु जदि एगो पयदणिसेगो एगा अवहारकालसलागा च लभदि तो उवरिमविरलणमेत्तपक्खेवेसु किं लभामो त्ति रूवूणदोगुणहाणीहि जवमज्झभागहारे आवट्टिदे सादिरेयदिवड्डरूवाणि लब्भंति । ताणि उवरिमविरलणम्मि पक्खित्ते तदणंतरउवरिमणिसेगभागहारो होदि । तस्स संदिट्ठी | ६||
___ उरि तदियणिसेगभागहारे आणिज्जमाणे रूवूणगुणहाणीए जवमज्झभागहारमोवट्टिय लद्धं तत्थेव पक्खित्ते तदियणिसेगभागहारो होदि । तस्स संदिट्ठी |७१।। उवरिमगुण
कम अधस्तन विरलन मात्र प्रक्षेपोंके समुदित होनेपर यदि एक प्रकृत निषेक और एक अवहारकालशलाका प्राप्त होती है तो उपरिम विरलन मात्र प्रक्षेपोंमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार रूप कम दो गुणहानियोंसे यवमध्यके भागहारको अपवर्तित करनेपर कुछ अधिक डेढ़ रूप प्राप्त होते हैं। उन्हें उपरिम विरलनमें मिलानेपर उसके अनन्तर उपरिम निषेकका भागहार होता है । उसकी संदृष्टि ७.११ ।
विशेषार्थ-यवमध्यके भागहार ७१.१ में एक कम दो गुणहानि आयाम ७ का भाग देनेपर ४११ लब्ध आते हैं। पुनः ४११ को यवमध्यके भागहार ४१.१ में जोड़ देनेपर ७११ यवमध्यके अगले निषेक ११२ के लानेके लिये भागहार होता है । यह उक्त कथनका तात्पर्य है । एक कम दो गुणहानि आयाम ७; यवमध्यभागहार ७१.१;
आगे तृतीय निषेकके भागहारको लाते समय एक कम गुणहानिसे यवमध्यके भागहारको अपवर्तित कर लब्धको उसीमें मिला देनेपर तृतीय निषेकका भागहार होता . है । उसकी संदृष्टि ४१ है ।
उदाहरण-एक कम गुणहानि आयाम ३: यवमध्यभागहार ११ + १ = १२३, ६१.१ + ११३ = २४९५ = ४.१ तृ. नि. का भागहार।
-
....................................
१ मप्रतौ ' समुदिदे ' इति पाठः।
२ मप्रतावत्र तदियाणिसेगहारे अवणिज्जमाणे रूवृणगुणहाणीए जवमझभागहारमोवट्टिय लद्धं तत्व परिवत्ते' इत्यधिकः पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org