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४, २, ४, २८. ]
यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
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पुणे सेसा रूवाहियगुणहाणिमेत्ता पक्खेवा अस्थि, तेहि पयदणिसेगो ण होदि त्ति अण्णेगरूवपक्खेवो णत्थि | अवरेसु केत्तिएस संतेसु बिदियरूवपक्खेवो होदि त्ति वुत्ते दुरूवूणगुणहाणिमत्सु संत होदि । तेण रूवूण दोगुणहाणीहि रूवाहियगुणहाणिमोवट्टिय लद्वेणव्वहियएगरूनपक्व होदित्ति घेत्तव्वं ।
हारशलाका प्राप्त होती है। पुनः शेष एक अधिक गुणहानि मात्र प्रक्षेप हैं, पर उनसे प्रकृत निषेक नहीं प्राप्त होता, अतः भागहार में मिलानेके लिये अन्य एक अंकका प्रक्षेप नहीं है । शंका- तो फिर इतर कितने प्रक्षेपोंके होनेपर दूसरे अंकका प्रक्षेप होता है ?
समाधान -- दो कम एक गुणहानेि मात्र प्रक्षेपोंके होनेपर दूसरे अंकका प्रक्षेप होता है।
इस कारण एक कम दो गुणहानियोंसे एक अधिक गुणहानिको अपवर्तित कर जो लब्धं आवे उतना अधिक एक अंकका प्रक्षेप होता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये ।
विशेषार्थ — यहां यवमध्यका भागहार तीन गुणहानियोंके काल प्रमाण और सब द्रव्य १५३६ प्रमाण निश्चित करके अन्य निषेकोंका भागहार प्राप्त किया गया है । यवमध्यका प्रमाण १२८ है और उसके पासके द्वितीय निषेकका प्रमाण ११२ है । यदि १५३६ मैं १२ का भाग देने से यवमध्यका प्रमाण १२८ प्राप्त होता है तो १५३६ में कितनेका भाग देनेसे द्वितीय निषेक ११२ प्राप्त होगा, इसी बातको यहां गणित प्रक्रिया द्वारा सिद्ध करके बतलाया गया है | इस विधि से द्वितीय निषेक ११२ का भागहार प्राप्त हो जाता है । इसका भाग १५३६ में देनेपर द्वितीय निषेक ११२ प्राप्त होता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है | अन इसी बातको मूलके अनुसार उदाहरण द्वारा दिखलाते हैं
उदाहरण
अधस्तन विरलन
१६ १६ १६ १६ १६ १६ १६ १६ શ્ १ १ १ १ १ १ १
उपरिम विरलन
१२८ १५८ १२८ १२८ १२८ १२८ १२८ १२८ १२८१२८ १२८ १२८ १ १ १ १ १ १ १ १ हूँ १ १ १
१५३६ । यहां एक प्रक्षेपका प्रमाण १६ है । इसे उपरिम विरलन में स्थित प्रत्येक संख्या में से कम कर देने पर तीन गुणहानि मात्र द्वितीय निषेक प्राप्त होते हैं और तीन गुणहानि
१ आ. काप्रत्योः ' अणेग ' इति पाठः ।
छ. वे. १२.
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