Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
९०]
छपखंडागमे वेयणाखंड
[ १, २, ४, २८. तदियणिसेगपमाणेणावहिरिज्जमाणे पक्खेवरूवगवेसणा कीरदे- तिण्णिगुणहाणिआयद-जवमज्झविक्खंभखेत्तम्मि दोपक्खेवविक्खंभ-तिण्णिगुणहाणिआयदत्तमुवरिमभागे तच्छे. दूण अवणिदे सेसं तदियणिसेगपमाणं होदि । अवणिदफालिं पक्खेवविक्खंभेण फालिय आयामण ढोइदे पक्खेवविक्खंभ-छगुणहीणिआयदखेत्तं होदि । तत्थ दुरूवूणदोगुणहाणिमेत्तपक्खेवेहि पयदगोवुच्छा होदि त्ति छपक्खेवाहियतिण्णिपक्खेवरूवाणि लभंति । पुणो अट्ठपक्खेवूणदोगुणहाणिमेत्तपक्खेवेसु संतेसु चउत्थपक्खेवरूवमुप्पज्जदि । ण च एत्तियमस्थि, तदो एगरूवस्स असंखेज्जीदमागेणब्भहियतिण्णिरूवाणि पक्खेवा होदि । एत्थ उवउज्जतीओ गाहाओ
फालिसलागभहियाणुवरिदरूवाण जत्तिया संखा । तत्तियपक्खेवूणा गुणहाणीरूवजणणटुं ॥ ६ ॥ ओजम्मि फालिसंखे गुणहाणी रूवसंजुआ अहिया । सुद्धा रूवा अहिया फाली संखम्मि जुम्मम्मि ॥ ७ ॥
मात्र प्रक्षेप शेष रहते हैं। इनमें से ७ प्रक्षेपोंका एक निषेक होता है तथा शेष ५ प्रक्षेप रहते हैं । इसलिये यहां द्वितीय निषेकका द्रव्य लाने के लिये १३४ लिया गया है ।
अब तृतीय निषेकके प्रमाणसे भाजित करनेपर भागहारमें कितने प्रक्षेप अंक प्राप्त होते हैं, इसका विचार करते हैं - तीन गुणहानि प्रमाण लम्बे और यवमध्य प्रमाण चौड़े क्षेत्र से दो प्रक्षेप प्रमाण चौड़े और तीन गुणहानि प्रमाण लम्बे क्षेत्रको उपरिम भागकी ओरसे छीलकर पृथक् कर देनेपर शेष तृतीय निषेक प्रमाण चौड़ा क्षेत्र प्राप्त होता है। निकाली हुई फालिको एक प्रक्षेपकी चौड़ाईसे फाड़कर लम्बाई में जोड़ देनेपर एक प्रक्षेप प्रमाण चौड़ा और छह गुणहानि प्रमाण लम्बा क्षेत्र होता है। यहां दो कम दो गुणहानि मात्र प्रक्षेपोंकी एक प्रकृत गोपुच्छा होती है, इसलिये छह प्रक्षेप अधिक भागहारमें मिलानेके लिये तीन प्रक्षेप अंक प्राप्त होते हैं। आठ प्रक्षेप कम दो गुणहानि मात्र प्रक्षेपोंके होनेपर भागहारमें मिलानेके लिये चौथा प्रक्षेप अंक प्राप्त होता है। पर इतना है नहीं. इसलिये भागहारमें मिलानेके लिये एकका असंख्यातवां भाग अधिक तीन अंक प्रमाण प्रक्षेप होता है । यहां उपयोगी पड़नेवाली गाथायें ये हैं
फालिशलाकाओंसे अधिक पूर्ववर्ती अंकोंकी जितनी संख्या हो, गुणहानिके स्थानोंको उत्पन्न करनेके लिये उतने प्रक्षेप कम करने चाहिये ॥६॥
फालियोंकी ओज अर्थात् विषम संख्याके होनेपर गुणहानिमें एक मिलानेपर अधिक स्थान आता है, एक जोड़नेपर अधिक गुणहानि आती है, और फालियोंकी सम संख्याके होनेपर शून्य जोड़नेपर अधिक गुणहानि आती है ॥ ७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org