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४, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
[१६. भागहारपमाणाणुगमो वुच्चदे । तं जहा- कम्मट्टिदिआदिसमयसंचिदस्स अंगुलस्स . असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ भागहारो होदि । कधमेदं णन्चदे ? कम्मट्ठिदिआदिसमयसमयपबद्धस्स सव्वुक्कस्ससंचओ मिच्छादिट्ठिणा सव्वसंकिलिट्टेण तिण्णिवाससहस्साणि आबाध कादूण आबाधूणतीसकोडाकोडीणं पदेसरचणं कुणमाणेण चरिमट्ठिदीए णिसित्तदव्वमेत्तो त्ति पाहुडसुत्तम्मि परविदत्तादो। तं जहा- कसायपाहुडे टिदिअंतियो णाम अत्थाहियारो । तस्स तिण्णि अणियोगद्दाराणि - समुक्कित्तणा सामित्तमप्पाबहुगं चेदि । तत्थ समुक्कित्तणाए अत्थि उक्कस्सटिदिपत्तयं णिसेयहिदिपत्तयं अद्धाणिसेयढिदिपत्तयं उदयहिदिपतयं चेदि । तत्थ जो समयपबद्धो कम्मट्टिदिकालमच्छिदण णिल्लेविज्जमाणो तस्स पोग्गलक्खंधाणमुदयविदिपत्ताणमग्गद्विदिपत्तयमिदि सण्णा । जं कम्मं जिस्से ठिदीए णिसित्तं तमोकड्डुक्कड्डणाहि हेट्ठिम-उवरिमहिदीणं गंतूण पुणो ओकड्डुक्कड्डणवसेण ताए चेव हिदीए होदण जहाणिसित्तेहि सह उदए दिस्सदि तण्णिसेगट्टिदिपत्तयं णाम । जं कम्मं जिस्से हिदीए णिसित्तमणोकड्डिदमणुकड्डिदं च होदण तिस्से चेव हिदीए उदए दिस्सदि तमद्धाणिसेगहिदि
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अब भागहारप्रमाणानुगमका कथन करते हैं । यथा-कर्मस्थितिके प्रथम समयमें संचित द्रव्यका भागहार अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है जो असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणियोंके जितने समय हैं उतना है।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-कर्मस्थितिके प्रथम समयमें बंधे हुए समयप्रबद्धका सबसे उत्कृष्ट संचय सर्वसंक्लिष्ट मिथ्यादृष्टिके द्वारा तीन हजार वर्ष प्रमाण आबाधा करके आवाधासे हीन तीस कोड़ाकोड़ियोंकी प्रदेशरचना करते हुए चरम स्थितिमें निषिक्त द्रव्य प्रमाण है, ऐसा प्राभृतसूत्रमें कहा गया है। यथा- कषायप्राभृतमें स्थित्यन्तिक नामक एक अर्थाधिकार है। उसके तीन अनुयोगद्वार हैं- समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । उनमेंसे समुत्कीर्तना अधिकार में उत्कृष्टस्थितिप्राप्त, निषेकस्थितिप्राप्त अद्धानिकस्थितिप्राप्त और उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका निर्देश किया है। उनमें जो समयप्रबद्ध कर्मस्थितिकाल तक रहकर निर्जीर्ण होनेवाला है उसके उदयस्थितिको प्राप्त हुए पुद्गलस्कन्धोंकी अग्रस्थितिप्राप्त संज्ञा है। जो कर्म जिस स्थितिमें निषिक्त है वह अपकर्षण और उत्कर्षण द्वारा अधस्तन व उपरिम स्थितिको प्राप्त होकर फिरसे अपकर्षण व उत्कर्षण द्वारा उसी स्थितिको प्राप्त होकर यथानिषिक्त परमाणुओंके साथ उदयमें दिखता है वह निषेकस्थितिप्राप्त कहलाता है। जो कर्म जिस स्थितिमें निषिक्त होकर अपकर्षण व उत्कर्षणके बिना उसी स्थितिमें उदयमें दिखता है वह अद्धानिषेकस्थितिप्राप्त कहलाता है। तथा छ. वे. १५
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