________________
१, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं सलागाओ संखेज्जगुणाओ । कारणं सुगमं ।
__ सव्वत्थोवो आउअस्स अण्णोण्णब्भत्थरासी । णामा-गोदाणमण्णोण्णन्भत्थरासी असंखेज्जगुणो । तिसियाणमण्णोण्णब्भत्थरासी अण्णोण्णेण समो होदूण असंखेज्जगुणो। मोहपीयस्स अण्णोण्णब्भत्थरासी असंखेज्जगुणो । एवं पमाणपरूवणा गदा। .
सव्वत्थोवाओ सव्वेसिं कम्माणं णाणागुणहाणिसलागाओ । एगपदेसगुणहागिट्टाणंतरम संखेज्जगुण । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । अप्पाबहुगं गदं ।
२८८ ३२० ३५२ ३८४
१४४ १६० १७६
१९२
२०८ २२४ २४०
umar or mar
४४८ ४८० ५१२
१२०
२५६
१२८
एदिस्से संदिट्ठीए विण्णासकमो ताव उच्चदे । तं जहा- तेसहि-सदमेत्तसमयपषद्धो
इसका कारण सुगम है।
आयु कर्मकी अन्योन्याभ्यस्त राशि सबसे स्तोक है। उससे नाम व गोत्रकी अन्योन्यभ्यस्त राशि असंख्यातगुणी है। उससे तीस कोड़ाकोड़ि प्रमाण स्थितिवाले ज्ञानावरणीय आदिकी अन्योन्याभ्यस्त राशि परस्पर समान हो करके असंख्यातगुणी है। उससे मोहनीयकी अन्योन्याभ्यस्त राशि असंख्यातगुणी है । इस प्रकार प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई।
सब कर्मोंकी नानागुणहानिशलाकायें सबसे स्तोक हैं। उनसे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्याता भा है जो पल्यापमके असंख्यात प्रथम वर्गमूल मात्र है । अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
अब सर्वप्रथम इस संदृष्टि (मूल में देखिये ) का विन्यासक्रम कहते हैं। यथा..वे. १६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org