Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५६) छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ४, २६. आउअमणुपालेतो बहुसो बहुसो उक्कस्ताणि जोगट्ठाणाणि गच्छदि ॥ २६ ॥
एदेण जोगावासो परूविदो । बहुसो बहुसो बहुसंकिलेसपरिणामो भवदि ॥ २७ ॥
एदेण संकिलेसावासो परविदो । सेसा तिण्णि आवासया किण्ण परूविदा १ ण ताव भवावासो एत्थ संभवदि, एक्कम्हि भवे बहुत्ताभावादो। ण आउआवासो परूविज्जदि, तस्स जोगावासे अंतब्भावादो । कथं जोगबहुत्तमिच्छिज्जदि ? णाणावरणस्स बहुदव्यसंचयणिमित्तं । ण च आउअमुक्कस्स जोगेण बंधतस्स णाणावरणस्सुक्कस्ससंचयो होदि, णाणावरणस्स बहुदव्वक्खयदंसणादो। तो जोगावासादो चेव आउवं जहणजोगेण चेव बज्झदि
आयुका उपभोग करता हुआ बहुत बहुत बार उत्कृष्ट योगस्थानों को प्राप्त होता है ॥ २६ ॥
इसके द्वारा योगावासकी प्ररूपणा की गई है। बहुत बहुत बार बहुत संक्लेश परिणामवाला होता है ॥ २७ ॥ इसके द्वारा संक्लेशाबासकी प्ररूपणा की गई है। शंका -शेष तीन आवालोंकी प्ररूपणा क्यों नहीं की है ?
समाधान-यहां भवावास तो सम्भव नहीं है, क्योंकि, एक ही भव में भवबहुत्वका अभाव है। आयु-आवासकी प्ररूपणा भी नहीं की जा सकती है, क्योंकि, उसका योगावासमें अन्तर्भाव हो जाता है।
शंका-यहां योगबहुत्व क्यों स्वीकार किया जाता है ?
समाधान-ज्ञानावरणके बहुत द्रव्यका संचय करनेके लिये यहां योगबहुत्व स्वीकार किया जाता है ।
यदि कहा जाय कि आयुको उत्कृष्ट योग द्वारा बांधनेवाले के ज्ञानावरणका उत्कृष्ट संचय होता ही है सो भी बात नहीं है, क्योंकि, इस प्रकारसे तो ज्ञानावरणके बहुत द्रव्यका क्षय देखा जाता है और इसलिये योगावाससे आयु जघन्य योग द्वारा ही बंधती
१ प्रतिषु ' आउअमशुसापालेंतो' इति पाठः। .
२ प्रतिषु ' भवे भवे' इति पाठः ।
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