________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्यक्त्व-कौमुदी
उस समय तुम लोगोंने मेरी बात न मानी, परन्तु देखते हो, उसी दुर्बुद्धिसे आज तुम्हारी मौत आ उपस्थित हुई।
नीतिकारोंने कहा है-विद्या न भी हो तो कुछ परवा नहीं, पर बुद्धिका होना जरूरी है। अपने हित अहितका ज्ञान तो होना ही चाहिए। क्योंकि यदि विद्या होकर भी जिन्हें अपने भले बुरेकी पहचान नहीं है, वे विनाशको प्राप्त होते हैं । जैसे कि सिंहको जिलानेवाले कुछ लोग मारे गये थे । एक समय वनमें एक अध मरा सिंह पड़ा था । कुछ लोगोंने उसे जीवित कर दिया । बादमें वह सिंह उन्हें ही खा गया । मतलब यह है कि तुम सब मूर्ख हो । यह सुनकर वे जालमें फंसे हुए हंस बोले-पिताजी, हमारे जीनेका कुछ उपाय सोचिए । बूढ़ा बोला-पुत्रो, अब तो जो होना था हो चुका, अब उपाय क्या हो सकता है ? एक नीतिकारने कहा हैअपनी मूर्खतासे, वा आलससे, अथवा देखभाल न करनेसे, जब काम बिगड़ जाता है, फिर मनुष्यका कोई बस नहीं चलता-सब उपाय व्यर्थ हो जाते हैं । जहाँ पानी ही नहीं वहाँ पुल बाँधनेसे क्या होता है ? यह सुनकर वे हंस फिर बोले-पूज्य, अपने चित्तको जरा स्थिर करके कोई उपाय सोचें तो अच्छा हो । यदि आप चित्तको स्वस्थ करके सोचेंगे तो कोई न कोई उपाय निकल ही आवेगा । नीतिकार कहते हैं, रक्त मांस आदि धातुसे बना हुआ यह शरीर मनके आधीन है । जब मनकी,शक्ति नष्ट हो जाती है तब शरीरके धातु
For Private And Personal Use Only