________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुयोधन राजाकी कथा |
१७
एक वनमें नाना भांतिके कमलोंसे शोभायमान निर्मल मानस नामका तालाव था । उसके तट पर एक सीधा और ऊँचा पेड़ था । उस पर बहुतसे हंस रहते थे । एक दिन उनमें से एक बूढ़े हंसने उस पेड़के पास एक वेलका अंकूर देखकर बाल-बच्चोंकी रक्षाके लिए कुछ हंसोसे कहाकि इस पेड़की जड़से निकलते हुए इस वेळके अंकूरेको अपनी चोंचोंसे तुम उखाड़ डालो, नहीं ने इससे तुम लोगोंकी एक न एक दिन मृत्यु होगी । इस बातको सुनकर वे युवा हंस उसकी दिल्लगी उड़ाने लगे - यह बूढ़ा हुआ, अब भी मरने से डरता है | चाहता है मैं सदा अमर रहूँ । भला यहाँ डर किस बातका ? बूढ़ेने उन दिल्लगी बाज़ोंकी बातें सुनकर मनमें विचारा - ये सब मूर्ख हैं। अपने हितकर उपदेशको ये नहीं समझते । सिर्फ गुस्सा होना जानते हैं । ठीक ही है अच्छे उपदेश से मूखको बहुधा क्रोध हो आता है। नकटेको दर्पण दिखानेसे क्रोध आजाना मामूली बात है। बूढ़ेने और भी सोचा कि मूखोंसे कुछ कहना निष्फल है । खैर, मौके पर इन्हें सब मालूम पड़ जायगा । इत्यादि विचार कर वह चुप हो गया । कुछ दिनों बाद वह वेल उस पेड़ पर चढ़ गई । एक दिन एक शिकारी उसे पकड़ कर उस पेड़ पर चढ़ गया और बहुतसे जाल उसने फैला दिये । रातमें वे सब हंस उस शिकारीकी जाल में फँस गये। उन सबका कोलाहल सुनकर बूढ़ा हंस बोला - पुत्रो,
२
For Private And Personal Use Only