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सुयोधन राजाकी कथा ।
हो जाता है, शूरवीर कायर-डरपोंक हो जाता है,बड़ी आयुवालोंकी आयु कम हो जाती है और कुलीन नीच हो जाता है । इत्यादि विचार कर यमदंड राजदरबारमें आया। यमदंडको देखकर राजा बोला-अरे यमदंड, शहरके महाजनोंकी तो तू रखवाली करता है और हमारी कुछ खबर ही नहीं रखता! आज मेरे खजानेकी सब चीजें चोर चुरा ले गये! उन सब चीजों और चोरोंको जितनी जल्दी हो सके मेरे सामने लाकर उपस्थित कर, नहीं तो तेरा सिर काटा जायगा । राजाकी इस बातको सुनकर यमदंड खजाना देखने गया । जाकर देखा तो खजानेके पास ही खड़ाऊँ, अँगूठी, और जनेऊ पड़ा है। यमदंडने उन तीनोंको उठा लिया । उसने खड़ाऊँसे राजाको, अँगूठीसे मंत्रीको और जनेऊसे पुरोहित महाराजको चोर निश्चय किया। जान लिया कि ये ही तीनों चोर हैं। यमदंडने सोचा-जब स्वयं राजाकी ऐसी दशा है तब फिर किससे कहा जाय ? इधर शहरमें कोलाहल मचगया कि राजाके खजानेकी चोरी हो गई । शहरके सब लोग वहाँ इकडे हो गये । राजाने भी उन सबोंको सारा हाल सुनाया। यह भी कहा कि यदि चोरीका पता न लगा तो यमदंड. का सिर काटा जायगा। महाजनोंने राजासे निवेदन किया कि महाराज, यमदंडको सात दिनकी मोहलत दीजिए । इतनेमें अगर यह चोरी हुई चीजोंको और चोरोंको न ढूँढलावे तो बादमें आप वही कीजिए जो आपने विचार रक्खा है। राजाने उन महाजनोंके कहनेको बड़ी कठिनतासे मान लिया।
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