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सुयोधन राजाकी कथा ।
कुछ दिनोंके लिए राजाका मान देकर मैंने यह बड़ा अनर्थ किया । नीतिकारोंने बहुत ठीक कहा है, जो राजा मंत्री आदि नौकरोंके हाथमें राज्यका भार दे स्वच्छन्द होकर आनन्द उडाते हैं, वे बिल्लियोंसे दूधके घडोंकी रखवाली करवाना चाहते हैं । अर्थात् नौकरोंके हाथमें राज्य सौंपना ठीक ऐसा ही है जैसे बिल्लीसे दूधकी रखवाली कराना । जो राजा ऐसा करते हैं वे सचमुच मूर्ख हैं। __ यमदंडसे सब प्रजाजन प्रसन्न हैं, इस बातसे राजाने अपना अपमान तो समझा पर यह बात उसने किसीसे न कही। राजाका ऐसा करना ठीक ही था। क्योंकि अपने धनका नाश, मनका संताप, घरकी बुराईयां, ठगाई और अपने अपमानको समझदार कभी प्रगट नहीं करते।
किसी तरह यमदंडने राजाके दुष्ट अभिप्रायोंको जान कर मनमें विचारा कि उस समय मैंने राज्यका भार अपने ऊपर लेकर अच्छा काम नहीं किया। यह बात सच है कि राजा अपनी दुष्टताको नहीं छोड़ता। यह लोकोक्ति भी है कि राजा किसीके वशमें नहीं होता । नीतिकारोंने भी कहा है कि जिस तरह कौएमें पवित्रता, जुआरीमें सत्यता, नपुंसकमें धैर्य, मदिरा पीनेवालोंमें तत्वविचार, साँपमें क्षमा तथा स्त्रियोंमें कामशांति, न देखी गई न सुनी गई, उसी तरह राजा भी न किसीका मित्र सुना गया, न देखा गया। कुछ दिनोंके बाद राजाने मंत्री और पुरोहितको
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