________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुयोधन राजाकी कथा ।
हो वही राजपुरोहित होने योग्य है। राजाके कोतवालका नाम यमदंड था। अपने इन सुयोग राजकर्मचारियोंके साथ सुयोधन सुखसे राज्य करता था। एक दिन सभामें बैठे हुए राजाके आगे आकर एक गुप्तचरने कहा-महाराज, शत्रुओंने आपके देशमें बड़ा ही उपद्रव मचाना शुरू किया है । इस बातको सुन कर राजा बोला-शत्रु लोग पृथिवीतलमें तबतक उपद्रव मचावें, अभिमान करें, जबतक कि वे मेरी कालके समान भयंकर तलवारके गोचर नहीं हुए हैं । वनके मृग स्वच्छन्द होकर तब ही तक विहार कर सकते हैं, जबतक कि सिंह अपनी आँखें मूंद कर गुफामें पड़ा है । लेकिन जब वह जागेगा और अपनी गर्दन परके बालोंको हिलाता हुआ गुफासे बाहर निकल गर्जना करेगा तब बेचारे मृगगण घबड़ा कर सुविशाल दिशाओंकी ही शरण लेंगे । मदोन्मत्त हाथी तब ही तक गरजते हैं जबतक कि सिरपर पूंछ रख कर सिंह उनके पास नहीं आता। कुएमें बैठा हुआ मेंढक तब ही तक टर्र टर किया करता है जबतक कि भयंकर काला साँप उसे दिखाई नहीं देता।
यह कहकर राजाने हाथी, घोड़े, रथ और पयादोंकी सेना लेकर शत्रुका पीछा करनेका उद्यम किया और सब सामन्त
और सुभटोंको संतोष देकर कहा-वीरो, युद्ध में शूरवीरोंकी, व्यसनमें बन्धुकी, आपत्तिमें मित्रकी और धनका नाश हो जाने पर स्त्रीकी परीक्षा होती है। ऐसा ही समय आपके लिए
For Private And Personal Use Only