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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * ५. बलि के शरीर का कटा हुआ माँस जहाँ गिरा वहाँ पर पुखराज
रत्न की खानें हुईं। ६. बलि के वज्र से कटे सिर के टुकड़े जहाँ गिरे वहाँ पर हीरे की
खानें उत्पन्न हुई जो कि सब रत्नों में श्रेष्ठ स्थान रखता है। ७. बलि के नेत्रों की पुतलियों के टुकड़े जहाँ गिरे वह स्थल नीलम
रत्न की खानें बन गयीं। ८. बलि के मेदा से गोमेद रत्न उत्पन्न हुआ। ९. देवताओं ने बलि के जनेऊ को तोड़ा तब उससे लहसुनिया रत्न
की उत्पत्ति हुई। १०. बलि के शरीर की कटी हुई नसें पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ गिरी वहाँ
से फिरोजा उपरत्न उत्पन्न हुआ इसे वैदूर्य मणि भी कहते हैं। ११. बलि के नेत्रों से चन्द्रज्योति के समान सफेद चन्द्रकान्त मणि की
उत्पत्ति हुई। १२. घृतमणि बलि की काँख से उत्पन्न हुई। १३. बलि के शरीर की त्वचा से तेलमणि उत्पन्न हुई। १४. बलि के कफ से उपलकमणि की उत्पत्ति हुई। १५. बलि के पसीने से स्फटिकमणि पैदा हुआ। १६. उसके कटे हुए सिर और वायुवीर्य के मिलकर गिरने से पृथ्वी पर
अमृतमणि उत्पन्न हुई। १७. बलि का हृदय टुकड़ों में विभाजित होकर उत्तरपर्वतों के शिखर
पर गिरा जहाँ वह पारसमणि के रूप में उत्पन्न हुआ। एक समय भगवान् शंकर और माता पार्वती वहाँ पहुँचे और तपस्या के लिये समाधि में लीन हो गये। उनके वहाँ से प्रस्थान के समय पारसमणि ने सिर झुकाकर निवेदन पूर्ण होकर कहा-हे भोलेनाथ, जब से आप यहाँ पधारे हैं मेरे सारे कष्टों का निवारण हो गया। लोहा, वज्रमणि अर्थात् हीरे के समान कठोर होता है मुझे उसी का भय है अत: यह वरदान दीजिये कि दोनों मिलकर एकरूप हो जायें। वरदान देकर शिव-पार्वती कैलाश पधारे। पारसमणि को बहुत
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