Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 180
________________ ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ १७९ रक्त के कारण रक्त कैंसर होता है । इस रोग में रक्त में श्वेत कणों की मात्रा बढ़ जाती है और लाल कणों का बनना कम होता जाता है । - ज्योतिषीय विचार- - रक्त का नियन्त्रक मंगल है। मंगल पर शनि तथा राहु-केतु की दृष्टि रक्त दोष का कारक है। तुला का शनि और सूर्य भी इस रोग को प्रश्रय देता है। सोने या ताँबे की अंगूठी में माणिक्य या अनामिका में नीलम पहनें । रत्न त्वचा से स्पर्श करता रहे। पेप्टिक अल्सर पाचन क्षेत्र में अन्दर होने वाला कोई भी फोड़ा पेप्टिक अल्सर के नाम से जाना जाता है । यह पेट में भी हो सकता है और ग्रहणी में भी हो सकता है । ४० वर्ष से अधिक उम्र के स्त्री-पुरुषों में यह अधिकता से पाया जाता है। इसकी उत्पत्ति पेट तथा ग्रहणी की झिल्ली में अम्लों तथा रसों के दुष्प्रभावों के कारण होती है। अधिक मदिरा सेवन तथा धूम्रपान करने वाले व्यक्ति प्रायः पेप्टिक अल्सर के शिकार हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त अनियमित खान-पान, घबराहट, उत्तेजना, चिन्ता करना और एस्पीरिनयुक्त दवाओं के लगातार सेवन करने के कारण भी पेप्टिक अल्सर रोग होने की आशंका होती है । इसके मुख्य लक्षण पेट के ऊपरी भाग में पीड़ा होते रहना और भोजन करने के उपरान्त पेट में पीड़ा होना आदि हैं। प्रायः इस रोग के लक्षण प्रारम्भ की अवस्था में पूर्णतः स्पष्ट नहीं होते । ज्योतिषीय विचार - लग्न का जब शनि अथवा मंगल से दृष्टि-वेध होता है, तब इस रोग की उत्पत्ति होती है। इसके अतिरिक्त कर्क या कन्या राशि में शनि या केतु के आक्रान्त होने पर, पाँचवे भाव में मंगल की उपस्थिति से सूर्य या केतु के आक्रान्त होने पर तथा सिंह राशि में शनि-राहु का योग होने पर पेप्टिक अल्सर होने की सम्भावना होती है । पन्ना तथा पीला नीलम क्रमशः मध्यमा तथा अनामिका में धारण करें। रोग यदि गम्भीर अवस्था में हो तो माणिक्य या मूंगे की भस्म का सेवन करना लाभदायक है । ८ से १० रत्ती का गोमेद, स्फटिक या लाजवर्त मध्यमा अँगुली में धारण करना भी हितकारी माना गया है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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