Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 193
________________ १९२ अन्यथा परिणाम घातक भी हो सकता है । ज्योतिषीय विचार - सिर पर मेष राशि का अधिपत्य है। राहु, मंगल, सूर्य तथा शनि की तनिक सी कुदृष्टि भी इस रोग के होने का योग बनाती है। इसके अतिरिक्त लग्न भाव पर शनि, मंगल की दृष्टि तथा सूर्य, शनि का मेष या तुला लग्न में एक साथ होना भी इस रोग का संकेत होता है । लग्नेश का रत्न धारण करें। ७-८ रत्ती का लाल मूँगा तथा मूनस्टोन या सच्चा सफेद मोती चाँदी में धारण करें। एक त्रिकोण पेण्डेण्ट में लग्नेश का रत्न मूंगा तथा पुखराज जड़वायें जिसमें माणिक्य बीच में हो, प्रकार का पेण्डेण्ट धारण करने से इस रोग का प्रभाव कम होता है । इस ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ हैजा दूषित पेयजल तथा बासी भोजन का सेवन करने से यह रोग होता है तथा यह रोग बरसात के दिनों में अधिक फैलता है तथा मक्खियों के द्वारा फैलता है और महामारी का रूप धारण कर लेता है। यह एक संक्रामक रोग है तथा इस रोग के प्रमुख लक्षण वमन, ज्वर, सिरदर्द, कमजोरी आदि प्रारम्भिक अवस्था में ही स्पष्ट हो जाते हैं । ज्योतिषीय विचार - गोचर में नीच का सूर्य, मंगल या शुक्र प्रायः यह रोग होने का कारण बनते हैं। मंगल और बृहस्पति कन्या राशि में हो और आठवें भाव में सूर्य और चन्द्र हों तो हैजे से रोगी की मौत भी हो सकती है। जब सिंह राशि या पाँचवे भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो या मंगल आदि का गोचर हो तो इस रोग के होने की सम्भावना रहती है। ६ रत्ती का पन्ना, पीला पुखराज और मूनस्टोन धारण करें । गोमेद तथा लहसुनिया धारण करना भी लाभदायक माना गया है। ★ रणधीर प्रकाशन, हरिद्वार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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