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★ रत्न उपरल और नग नगीना ज्ञान *
कैंसर यह शरीर के किसी भी भाग में होने वाला असाध्य रोग है। प्रायः पुरुषों में मुख का तथा स्त्रियों में गर्भाशय का कैंसर सर्वाधिक पाया जाता है। शरीर के अन्दर किसी भी भाग में अवान्छित ग्रन्थि निकल आती है, जो कभी-कभी रोग की व्यग्रावस्था में फूट कर बाहर भी निकल सकती है। इस रोग में मुख के अन्दर इस प्रकार के घाव हो जाते हैं जो कभी ठीक नहीं होते। इसके अतिरिक्त अपच, वमन, आवाज में परिवर्तन आना, भोजन निगलने में कठिनाई आदि लक्षण स्पष्ट होते हैं । इस रोग के होने के कारण अधिक स्पष्ट तथा ज्ञात नहीं हैं।
ज्योतिषीय विचार-कैंसर के जीवाणु को जन्म देने के लिए कुछ ग्रह योग माने गये हैं, जैसे-चन्द्रमा किसी भी राशि का हो और छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो और उस पर तीन पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो यह निश्चित ही कैंसर रोग का सूचक है। शनि और वृहस्पति अगर कर्क या मकर राशि में हो तब भी कैंसर होने की आशंका रहती है। शनि, केतु और वृहस्पति पर यदि नीच चन्द्रमा या नीच राशि के मंगल की पूर्ण दृष्टि, वृहस्पति, केतु और शुक्र का किसी भी राशि में योग, चन्द्रमा, केतु और शनि तथा चन्द्रमा, केतु एवं मंगल अथवा चन्द्रमा अथवा राहु और शनि कहीं भी एक साथ बैठे हों तो कैंसर होने का योग बनता है। छठे भाव में स्थिर राशि का मंगल, इसी भाव में द्विस्वभाव राशि का शनि भी कैंसर के कारक माने जाते हैं।
मध्यमा उंगली में स्वर्ण अथवा ताँबें की अंगूठी में माणिक्य या अनामिका में नीलम धारण करना चाहिए। कैंसर के ऑप्रेशन के बाद ४ से ७ रत्ती का पुखराज और ८ रत्ती का मूंगा धारण करने से फायदा होता है।
रक्त कैंसर रक्त कैंसर को ल्यूकीमिया के नाम से जाना जाता है। इस रोग का कोई उपचार नहीं है और इस रोग में रोगी की मृत्यु निश्चित होती है। विषाक्त जीवाणु शरीर की रक्त प्रणाली में पहुँचकर रक्त को दूषित कर देते हैं और यही दूषित
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