Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 177
________________ १७६ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ गुर्दे में कुछ विशेष कमी के कारण भी गठिये के लक्षण दिखायी देते हैं। ज्यादातर यह रोग ४५ वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों को होता है। जोड़ों में तेज असहनीय दर्द व सूजन आ जाती है। त्वचा लाल पड़ जाती है। ज्यादातर गठिया पैर के अंगूठे में, टखने में होता है। घुटने पर का गठिया बहुत कष्टदायक होता है। ज्योतिषीय विचार-मिथुन, तुला तथा कुम्भ राशि के व्यक्ति इस रोग से अधिक पीड़ित होते हैं। बृहस्पति लग्न में तथा शनि सप्तम भाव में हो तो गठिया रोग होने की प्रबल सम्भावना बनती है। वृष, सिंह, कन्या, मकर तथा मीन राशियों में शनि-राहु का योग और मंगल की सीधी दृष्टि हो तो वायु रोग होने की सम्भावना निश्चित होती है तथा राहु तो वायु रोगों आश्रय देने वाला होता है। स्वर्ण या ताँबा इस प्रकार धारण करें कि शरीर से स्पर्श होता रहे। गोमेद तथा पीला पुखराज इस रोग को बढ़ने से रोकता है। नपुंसकता यह एक यौन रोग है, जो पुरुषों में पाया जाता है। इस रोग में पुरुष की जननेन्द्रिय में विकास नहीं हो पाता, जिस कारण वह संतानोत्पत्ति में असमर्थ होता है। कभी-कभी ऐसी अवस्था भी होता है कि लिंग का विकास तो हो जाता है किन्तु वीर्य बाहर नहीं आता, यह भी नपुंसकता की स्थिति होता है। ज्यादा थकान और तनाव, चिन्ता इत्यादि के कारण भी नपुंसकता आ जाती है, किन्तु यह अवस्था अस्थायी होती है। साधारणतया यह रोग मानसिक कारणों से ज्यादा होता है। शारीरिक नपुंसकता तो दस प्रतिशत पुरुषों में भी नहीं पायी जाती है। अत: इस रोग के निवारण में मनोचिकित्सक की सलाह आवश्यक है। ज्योतिषीय विचार-पंचम तथा सप्तम भाव में पाप ग्रह बैठे हों, शुक्र, मंगल या सूर्य से दूषित हो अथवा सप्तम भाव में शनि और बुध स्थित हो तो नपुंसकता होने का योग बनता है। शनि की दृष्टि लग्न या सप्तम भाव पर हो तो तब भी नपुंसकता रोग के होने की सम्भावना रहती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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