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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★
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हरा पन्ना, पीला पुखराज तथा लाल मूँगा समान वजन का पेण्डेण्ट या कड़े में धारण करना उपयुक्त रहता है और तीनों रत्नों को समान मात्रा में कड़े के स्थान पर अँगूठी में भी पहना जा सकता है । रत्नों की भस्म बनाकर सेवन करने से भी रोग में लाभ होता है ।
सफेद दाग
सफेद दाग को ल्यूकोडर्मा कहा जाता है । चर्म रोगों में यह रोग अधिक पाया जाता है। इस रोग में शरीर की त्वचा पर अलग-अलग जगहों पर सफेद चकत्ते या दाग पड़ जाते हैं। शरीर की आन्तरिक संरचना में इस रोग से कोई दोष नहीं होता तथा न किसी प्रकार का कोई कष्ट होता है । इस रोग में पड़ने वाले सफेद दाग धीमे-धीमे रोगी के पूरे शरीर पर फैल जाते हैं । कुछ व्यक्ति इसे कुष्ठ रोग की श्रेणी में रखते हैं और रोगी से घृणा करते हैं । वास्तव में हमारे शरीर में मेलालिन नामक एक तत्त्व होता है जो त्वचा का रंग निर्धारित करता है । यदि इस तत्व की संरचना में कोई परिवर्तन हो जाता है तो यह रोग होता है । यह कुष्ठ रोग नहीं है, इसे कुष्ठ रोग कहने वाले व्यक्ति गलतफहमी में रहते हैं ।
ज्योतिषीय विचार- - चन्द्र, मंगल तथा शनि का मेष तथा वृष राशि में संयोग होने पर यह रोग होता है। शनि बारहवें भाव में, मंगल दूसरे भाव में, चन्द्रमा लग्न में तथा सूर्य सातवें स्थान में हो तो तब भी इस रोग के होने की सम्भावना बनती है। किसी भी जल राशि में चन्द्रमा तथा शुक्र का योग हो, चन्द्र, मंगल या लग्न का स्वामी राहु-केतु युक्त हो, लग्नेश, चन्द्रमा तथा बुध का राहु-केतु से युति का योग हो तो भी सफेद दाग होने की सम्भावना अधिक होती है। यदि बुध शत्रु राशि में, अस्त या वक्री हो, शुक्र नीच राशि में अस्त या वक्र या शनि-राहु के मध्य हो तो भी इस रोग के होने का संकेत होता है।
१ या २ रत्ती का हीरा, ८ रत्ती का फीरोजा और ३ रत्ती का मोती धारण करना हितकारी होता है। विशेष प्रकार की रोग स्थिति में ४ से ७ रत्ती का पुखराज धारण करना लाभदायक रहता है।
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