Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 188
________________ ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ १८७ प्रभावित अंग कठोर व ठण्डा प्रतीत होता है। ज्योतिषीय विचार-इस रोग का कारक शनि है। शनि लग्न या सातवें, एकादश में नीच राशि का होना शीत दंश होने की सम्भावना होती है। लाल कपड़ा या लाल धागा, ताँबे की अंगूठी तथा मूंगा धारण करें। माणिक्य पहनना भी उचित है। मिरगी इस रोग से रोगी को दौरे पड़ते हैं तथा देर तक रोगी छटपटाता है। फिर बेहोश हो जाता है। अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से मस्तिष्क पर गुम चोट लगना तथा भावनात्मक असंतुलन इस रोग के प्रमुख कारण हैं। ज्योतिषीय विचार-कमजोर और शुष्क लग्नेश (मेष, सिंह या धनु) के जातकों को यह रोग ज्यादा होता है। मस्तिष्क का स्वामी मेष है। बुध और चन्द्र भी मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। चन्द्र और बुध के राहु से पीड़ित होने की दशा में केतु के साथ चन्द्र या बुध का योग होने से मिरगी का दौरा पड़ता है। पन्ना और मूनस्टोन धारण करें। लग्नेश का रत्न धारण करना भी लाभकारी है। अन्धापन यह अन्धापन का रोग बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण होता है। यह रोग स्थायी व अस्थायी दोनों प्रकार के हो सकता है। अस्थायी अन्धापन चिकित्सक उपचार से ठीक हो जाता है। लेकिन स्थायी अंधापन से आँखें खराब हो जाती हैं, वह ठीक नहीं हो पाती। विटामिन-बी की कमी से भी यह रोग होता है। ज्योतिषीय विचार-लग्न से दूसरा तथा बारहवाँ भाव आँखों की स्थिति दर्शाता है। सूर्य, दायी आँख का तथा चन्द्र बायी आँख का संचालक है। यदि इन दोनों ग्रहों पर शनि की कुदृष्टि पड़ती है तो नेत्र-दोष होने की आशंका रहती है। वृष तथा मीन राशि भी आँखों के रोगों को प्रभावित करते हैं। सफेद मोती, मून स्टोन तथा मूंगा धारण करना लाभदायक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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