Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 187
________________ १८६ ★ रल उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * घेघा घेघा रोग कुपोषण के कारण होता है। इस रोग में थॉयराइड ग्रंथियों से स्रावित होने वाले हार्मोन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तथा कण्ठ नली फूल कर बाहर की ओर उभर आती है। इस रोग का एक प्रमुख कारण आयोडीन की कमी है। ज्योतिषीय विचार-लग्न में पाप ग्रह हो या बुध वक्री अथवा अस्त हो तो घेघा रोग होने की सम्भावना होती है। मिथुन और वृष राशि के बीच पाप ग्रह बैठे हों तो या वृष राशि का सूर्य अस्त हो तो भी यह रोग हो सकता है। सफेद मोती, माणिक्य तथा लहसुनिया धारण करें। सुनैला, पुखराज और मूंगा एक साथ पहनना भी लाभकारी माना गया है। गैंगरीन शरीर के जिस अंग पर इस रोग का प्रभाव पड़ता है वहाँ की कोशिकायें भर जाती हैं। इससे प्रभावित अंग में रक्त संचार रूक जाता है तो वह अंग सुन्न पड़ जाता है। इस रोग से प्रभावित अंग काला पड़ जाता है तथा आसपास की चमड़ी लाल हो जाती है तथा पस पड़ जाती है और सूज जाती है। इस रोग का तुरन्त उपचार करना चाहिये। ज्योतिषीय विचार-इस रोग का कारण शनि लग्न, सप्तम या किसी भी केतु भाव में नीच या शत्रु राशि का शनि हो या लग्नेश शनि के साथ बैठा हो तो गैंगरीन होने की आशंका रहती है। लाल धागा, लाल कपड़ा या लाल मूंगा के साथ ताँबे या लोहे का छल्ला धारण करें। ताँबे के साथ माणिक्य पहनना भी लाभकारी शीत दंश शीत दंश रोग तब होता है जब शरीर का कोई भी भाग लगातार अत्यधिक शीत के प्रभाव में रहे। हाथ की अंगुलियाँ, पैरों की अंगुलियाँ, नाक, कान, ठोड़ी तथा गलों पर शीत दंश का प्रभाव अधिक होता है। छूने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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