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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान *
एक दृष्टि में धारण स्थान
धारण समय
अवधि
धारण मन्त्र
दायें हाथ की अनामिका
सूर्योदय
४ वर्ष
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः
दायें हाथ की कनिष्ठका
सन्ध्या
२ वर्ष १ माह २७ दिन या जब तक न टूटे ३ वर्ष ३ दिन
दायें हाथ की अनामिका
दायें हाथ की कनिष्ठका
३ वर्ष
सूर्योदय के एक घण्टे बाद सूर्योदय के दो घण्टे बाद सूर्योदय से एक घण्टा पूर्व प्रातः
दायें हाथ की तर्जनी
४ वर्ष ३ माह १८ दिन । ७वष ७ वर्ष
दायें हाथ की कनिष्ठका
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ॐ ग्रां ग्री गौं सः गुरूवे नमः ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नमः ॐ भ्रां भ्रीं श्रौं सः राहुवे नमः ॐ रां प्री स्रौं सः केतुवे नमः
दायें हाथ की मध्यमा
दायें हाथ की मध्यमा
सूर्योदय से दो ५ वर्ष घण्टे पूर्व सायं से दो घण्टे ३ वर्ष बाद अर्द्धरात्रि ३ वर्ष
दायें हाथ की मध्यमा या कनिष्ठका
है। वैश्य वर्ण का माणिक्य पीले रंग की आभा (चमक) लिये होता है। यदि ब्राह्मण इसे धारण करें तो भी उसे लाभ ही लाभ होता है। शूद्र वर्ण का माणिक्य शूद्र ही धारण करे तो उसे सुख सम्पत्ति तथा आनन्द की प्राप्ति होती है। यह मणि श्याम रंग की चमक लिये होती है।
दोषपूर्ण माणिक्य धारण करना निषेध है। यह स्वयं के लिये तथा परिवारजनों के लिये कष्टदायक सिद्ध होता है साथ ही सुख-सम्पत्ति का भी नाश करता है। इसके दस दोष निम्नलिखित हैं
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