Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 164
________________ ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ १६३ व्यक्ति को भी हो जाता है। समलिंगी पुरुष इस रोग के अधिक शिकार होते हैं । गर्भवती स्त्री से होने वाले शिशु को भी यह रोग होने की सम्भावना रहती है। इसका इलाज समय पर करवाना चाहिये अन्यथा जान जाने का भय होता है । ज्योतिषीय विचार - गुप्त अंगो पर लग्न से सातवें तथा आठवें भाव का नियन्त्रण रहता है। यदि इन दोनों भावों में मंगल व शुक्र पीड़ित हो तो इस रोग के होने का योग बनता है । ऐसी स्थिति में सफेद या लाल मूँगा धारण करना चाहिये । नजला-जुकाम नजला-जुकाम होना आजकल आम बात है। यह रोग जलवायु परिवर्तन के कारण होता है। इसमें रोगी की नाक से पानी बहता है । कफ बनता है तथा समय से पहले बाल सफेद हो जाते हैं। लगातार दवाई करने से यह ठीक हो जाता है । ज्योतिषीय विचार - इस रोग के होने में ग्रहों का कोई विशेष योग नहीं होता है । सामान्य ग्रह वाले प्राणी को भी यह रोग हो सकता है । माणिक्य, मूँगा, पुखराज मिश्रित अँगूठी पहनने से नजला-जुकाम का प्रकोप कम होता है । पाद-दोष पैरों पर शनि का अधिकार माना गया है पैरों में अनेक तरह के विकार होते हैं। जैसे-पैर सूखना, पैर में मोच आना व पैर फटना, सूजन या पसीना आना आदि पाद-दोष रोग हैं। इन सब दोषों के कारण और उपचार भिन्न हैं । ज्योतिषीय विचार – यदि सूर्य या शनि कोई भी एक छठे भाव में स्थित है तो पाद- दोष हो सकता है। यदि कुम्भ, मकर अथवा मीन राशियों में अगर राहु केतु सूर्य या शनि बैठे है तो पैरों में चर्म विकार होने की आशंका रहती है । पुखराज धारण करें। नीलम या लाजवर्त ८ रत्ती, लाल माणिक्य ६ रत्ती, ३-४ रत्ती का सफेद पुखराज अलग-अलग अँगुलियों में पहनने से लाभकारी होगा ऐसा माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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