Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * १७१ मुँह में छाले खट्टा, मीठा, चटपटा तथा मसालेदार भोजन लगातार खाने से मुँह में छाले हो जाते हैं। पानी तथा जलवायु परिवर्तन तथा पेट में निरन्तर कब्ज रहने के कारण भी मुँह में छाले हो जाते हैं । इस रोग में खाना-पीना बहुत मुश्किल हो जाता है। उपचार करने पर यह रोग ठीक हो जाता है। ज्योतिषीय विचार-शरीर में जलन तथा फफोलों का कारक मंगल है। जिन जातकों का जन्म समय मंगल तुला या वृष राशि में हो उन्हें युवावस्था में प्राय: यह विकार परेशान करता है। लग्न तथा वृष पीड़ित होने पर भी मुँह में छालों की शिकायत रहती है। स्फटिक मोती तथा मूनस्टोन धारण करें। लाल कपड़ा या लाल धागा अवश्य पहनें। ताँबे की अंगूठी में मूंगा पहनने से यह रोग के प्रभाव कम कर देता है। सर्दी-जुकाम सर्दी-जुकाम आम रोग है। यह सर्दी गर्मी कभी भी किसी मौसम में हो जाता है। इस रोग को फैलाने वाले विभिन्न प्रकार के वायरस जिम्मेदार हैं। मौसम परिवर्तन के समय सर्दी-जुकाम हो जाता है। ज्यादातर यह रोग सर्दी के मौसम में होता है। यह भी संक्रामक रोग है। जो हवा के माध्यम से फैलता है। नाक बहना, खाँसी तथा छींके आना, साँस फूलना आदि सर्दी जुकाम के लक्षण है। ज्योतिषीय विचार-शनि तथा चन्द्र इस रोग के कारक हैं और मंगल ग्रह रोग का प्रतिरोधी है। शनि की प्रतिक्रिया का शमन करने हेतु ५ रत्ती का माणिक्य ताँबे की अंगूठी में धारण करें। लाल मूंगा तथा लाल कपड़ा धारण करने से भी इस रोग का प्रकोप कम होता है। वर्णाधता यह रोग वंशानुगत रोग है और इसका कोई उपचार नहीं है। यह रोग पुरुषों को अधिक होता है। ज्यादा तेज रोशनी व कम रोशनी में लगातार काम करने से यह रोग होता है। इसमें आँखों की रंगों में अन्तर कर पाने की क्षमता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194