Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 174
________________ ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * १७३ इत्यादि भी हैं। छाती में तीव्र पीड़ा होने पर हृदयाघात के लक्षण स्पष्ट होते हैं। यदि बाईं भुजा से ऊपर की ओर बढ़ता दर्द प्रतीत होता है तो यह भी हृदयाघात का ही एक प्रमुख कारण या लक्षण है। लगभग (३०) तीस मिनट तक दर्द रहता है और ऐसी अवस्था में रोगी की यदि तत्काल चिकित्सा न की जाये तो यह हानिकारक हो सकता है। इस रोग के अन्य लक्षण शरीर का शिथिल हो जाना, वमन होना, साँस लेने में कठिनाई तथा बेचैनी का अनुभव होना आदि हैं। इस रोग का उपचार यही है कि रोगी को फौरन चिकित्सकीय सहायता देनी चाहिये। इस रोग में रोगी को तुरन्त आराम देने के लिये कुछ विशेष दवायें भी हैं। ज्योतिषीय विचार-हृदय पर कर्क और सिंह राशियों का नियंत्रण है। चन्द्रमा का भी हृदय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि राहु, शनि और मंगल की कुदृष्टि सूर्य तथा चन्द्र पर हो तो ४०-४५ वर्ष की आयु के बाद हृदय रोग होने की आशंका होती है। अशुभ सूर्य से यदि राहु तथा मंगल का संयोग हो जाये तो नशीले अर्थात् मादक पदार्थ हृदय रोग के उत्पन्नकारी बनते हैं। सर्य-मंगल का योग रक्त विकारों से हृदय रोग उत्पन्न करने का कारक है। लग्न जल तत्त्व राशि में हो और उसमें मंगल, शनि एवं राहु का योग बनता हो तो हृदय गति अचानक रूक जाने की प्रबल सम्भावना रहती है। अग्नि तत्त्व राशि में लग्न के होने पर प्रदूषित वातावरण तथा ऑक्सीजन की कमी होने के कारण हृदय रोग हो सकता है। सूर्य और चन्द्र से दृष्ट वृहस्पति लग्न में हो तो मोटापे से हृदय रोग होने की सम्भावना रहती है। मकर या कर्क राशि में बैठे पाप ग्रह भी हृदय रोग उत्पन्न कर सकते हैं। मूंगा व पुखराज धारण करें, यदि फायदा न हो तो मोती और पन्ना धारण करें, लाभ अवश्य होगा। ऐंठन-मरोड़ (क्रैम्प) यह माँसपेशियों में अतिसंकुचन होने वाला रोग है। यह कभी भी कहीं भी किसी भी माँसपेशी में हो सकता है। ऐंठन के कारण कभी-कभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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