Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 165
________________ १६४ ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * आन्त्रशोथ इस रोग को कोलाइटीस का रोग कहते हैं। इसका मुख्य कारण आँतों में अम्ल की मात्रा का बढ़ जाना है। पेट में आँतों के निकटवर्ती भाग में तीव्र पीड़ा होती है। एक विशेष प्रकार का जीवाणु आँतों में संक्रमण कर देता है। इस रोग में निरन्तर उल्टी तथा अतिसार के साथ तेज बुखार के लक्षण प्रतीत होते हैं । विषाक्त भोजन व दूषित जल पीना भी आन्त्रशोथ रोग का एक प्रमुख कारण है। ज्योतिषीय विचार-मेष राशि में सूर्य-शनि का योग या सूर्य का नीच राशि में होना आन्त्रशोथ की सम्भावना होती है। छठे या आठवें भाव में यदि शनि या मंगल एक साथ बैठे हो मंगल कर्क या कन्या राशि में होकर छठे भाव पर दृष्टि डालता है या बारहवें स्थान में अनेक ग्रहों का योग हो तो भी आन्त्रशोथ होने का योग बनता है। ___ पन्ना तथा मूनस्टोन क्रमशः सोने तथा चाँदी की अंगूठियाँ अलगअलग पहनना लाभकारी होगा। नेत्रशोथ आँखों के इस रोग का नाम कंजक्टिवाइटिस है। यह गर्मी तथा बरसात के दिनों में होने वाला संक्रामक रोग है। जो महामारी की तरह फैलता है। आँखों के सफेद भाग पर पारभासक झिल्ली सी होती है। जिससे संक्रमण के कारण जलन होने लगती है और आँखों से पानी बहने लगता है। आँखे सूजकर लाल हो जाती है और उसमें चिपचिपा पदार्थ जमने लगता है। इस रोग का मुख्य कारण प्रदूषित वातावरण है। आँख के इस रोग का समय पर उपचार करना चाहिये। ज्योतिषीय विचार-सूर्य और मंगल जब अशुभ गोचर में भ्रमण करते हैं तो सामान्य लोग भी इस रोग के चपेट में आ जाते हैं। इस रोग के लिये कोई विशेष ग्रह योग निर्धारित करना सम्भव नहीं है। पन्ना धारण करें। इसके अलावा मूनस्टोन, ओपल, जिरकॉन धारण करने से भी नेत्र रोगों का निवारण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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