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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान *
२. मोती रत्न (Pearl) यह चन्द्रमा का रत्न है। मोती आठ प्रकार के होते हैं। इनमें सात प्रकार के मोती छेदे नहीं जाते और इच्छित फलप्रद होते हैं। सिर्फ सीप के मोतियों में छेद किये जाते हैं और वे भी शुभ होते हैं । इनमें अच्छे गुणों वाला, कोमल जाति, अण्डे जैसे स्वरूप और स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न मोती सोच समझकर और देखकर लेना चाहिये। इनके नाम निम्न प्रकार हैं
१. शंख मोती, २. गजमोती, ३. शुक्ति मोती, ४. सर्पमोती, ५. मीन मोती, ६. आकाश मोती, ७. शूकर मोती, ८. आकाश मोती।
जिस प्रकार मानव शरीर पाँच तत्त्वों से निर्मित है, उसी प्रकार रत्नों की उत्पत्ति भी पाँच तत्त्वों से हुई है। जल के तत्त्व वाला मोती चमकीला और निर्मल, भूमि तत्त्व वाला मोती भारी होगा। आकाश तत्त्व वाला मोती हल्का होता है। वायु तत्त्व के मोती लहरदार, गर्जनशील तथा नीले वर्ण के होते हैं। लंका, भूमध्यसागर तथा सिंहल में श्वेत मोती तथा बसरा, स्याम, दरभंगा में पीले रंग के मोती उत्पन्न होते हैं। पाटल रंग का सिंहल में, सुर्ख मोती दरभंगा में विशेष होता है। दो जाति के मोती गोल व शुद्ध होते हैं। इनके अतिरिक्त मोती खुरदरे, लम्बे, बेडौल, दोषयुक्त और कम चमक वाले होते
सफेद रंग का मोती ब्राह्मण के लिये बुद्धि में वृद्धि करने वाला, पाटल (लाल) मोती क्षत्रियों के लिये उनका तेज बढ़ाने के लिये, पीले मोती वैश्यों के लिये अन्न-धन में वृद्धिकारक तथा श्याम वर्ण के मोती शूद्रों के लिये लाभदायक सिद्ध होते हैं। मोती को पहनने से आनन्द तथा सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
मोती की पहचान१. किसी कपड़े में धान की भूसी लेकर उसमें मोती रखकर मोती
को बहुत तीव्रता से मलें। यदि मोती असली होगा तो वह टूटेगा नहीं व खूब चमकेगा किन्तु यदि मोती का चूर्ण बन जाये तो
नकली मोती होगा। २. दूसरी परीक्षा यह है कि मिट्टी की हाँडी को गाय के मूत्र से भर
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