Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 158
________________ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ १५७ कंठ शूल हमारी श्वास नलिका में माँसल ऊतकों को छोटे-छोटे टुकड़े गिल्टियों के रूप में होते हैं ये हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का अंग है। जो कीटाणुओं को नाक द्वारा गले तक पहुँचने से रोकते हैं। यह प्रायः छोटे बच्चों को होने वाला रोग है। बच्चों को ठण्ड लगने से सर्दी-जुकाम हो जाता है। तो ये गिल्टियाँ सूज जाती है। कान बन्द हो जाते हैं, सुनने में कठिनाई होती है, सूंघने की शक्ति कम हो जाती है। भोजन बेस्वाद लगता है। खान अच्छा नहीं लगता, रोग ज्यादा बढ़ जाने पर चिकित्सक की निर्देशानुसार इलाज करायें। ज्योतिषीय विचार-वृष, तुला तथा वृश्चिक राशि के जन्मे या गोचर वाले में मंगल की उपस्थिति यह रोग उत्पन्न करती है। शुक्र, बुध के नीच राशि में होने पर सप्तम भाव में पाप ग्रहों की उपस्थिति से तथा पूर्ण मंगल दोष योग भी इस रोग के कारक हैं। सोने या चाँदी की अंगूठी में पुखराज या सुनैला धारण करें। शुद्ध मूंगा ५ रत्ती का चाँदी में मढ़वाकर अनामिका में धारण करें। मूंगा या पुखराज का पैण्डल जंजीर में डाल कर गले में पहन सकते हैं। __ गलसुआ इसे पम्पस के नाम से भी जाना जाता है। यह बाल्यावस्था में होने वाला रोग है। यह शरीर की विभिन्न लाल-ग्रंथियों पर होता है और वे सूज जाती हैं। प्रदाह तथा कान के नीचे के भाग में सूजन इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण हैं। किसी भी चीज को खाने, चबाने, निगलने में कठिनाई होती है। आठ-दस दिन में यह स्वयं ही ठीक हो जाता है। ज्योतिषीय विचार-मंगल इस रोग का कारक है । तुला स्थित मंगल हो तो यह रोग होता है। दूसरा तथा आठवाँ भाव अशुभ हो तो भी इस रोग के होने की सम्भावना रहती है। सफेद या लाल मूंगा पहनना लाभकारी है। रक्ताल्पता (एनीमिया) लौह तत्वों की बहुत कमी के कारण यह रोग एनीमिया के नाम से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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