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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★
जाना जाता है। शरीर के रक्त में लाल रक्त कणों की कमी हो जाना इस रोग का प्रमुख कारण है। इसके अलावा स्त्रियों को मासिक धर्म के समय बहुत ज्यादा रक्तस्राव होने तथा किसी दुर्घटना में ज्यादा रक्त बह जाने से भी रक्ताल्पता की शिकायत हो सकती है। विटामिन बी तथा फालिक एसिड की कमी भी रक्ताल्पता ले आती है। बच्चों के साथ-साथ स्त्रियों में यह रोग अधिक होता है । विशेषतः गर्भावस्था में स्त्रियों को इसकी शिकायत होती है । कान्तिहीन त्वचा, शीघ्र थकान अनुभव करना इसके प्रमुख लक्षण हैं।
ज्योतिषीय विचार - केतु और त्रिकोण भावों का गृहविहीन होना इस रोग को जन्म देता है। सूर्य तथा शनि की पीड़ित अवस्था में पाचन शक्ति की कमजोरी से यह रोग होता है । वृष, सिंह तथा कुम्भ राशियों में राहुकेतु की उपस्थिति से अधिक रक्त बह जाने से रक्ताल्पता की सम्भावना रहती है । बृहस्पति सिंह राशि में, मंगल से छठे, आठवें या बारहवें भाव में या मंगल कर्क राशि में बैठा हो तथा चन्द्रमा छठे भाव में हो तो भी रक्ताल्पता की शिकायत हो सकती है। कलाई में लोहे का कड़ा पहनें, ५ रत्ती मूँगा तथा ५ से ७ रत्ती का पुखराज सोने या चाँदी की अँगूठी में दायें हाथ में धारण करें ।
अपेण्डिसाइटिस
अपेण्डिक्स में प्रदाह तथा शोध की स्थिति ही अपेण्डिसाइटिस कहलाती है । इस रोग पेट में तेज दर्द होता है। रोग के अन्तिम स्टेज पर यह पेट में भी फट सकता है और जान भी जा सकती है। आप्रेशन के द्वारा इसको निकलवा देना चाहिये। यह एक सफल उपचार है। रोगियों में इसके विभिन्न प्रकार के लक्षण होते हैं । यह रोग किसी को भी हो सकता है ।
ज्योतिषीय विचार - मंगल इस रोग का प्रधान कारक माना गया है। मंगल का दूषित होता, कन्या, तुला तथा वृश्चिक राशियों में शनि, राहु का मंगल के साथ योग होना अपेण्डिसटिस होने की सम्भावना होती है। मेष लग्न, शनि, तुला लग्न तथा मकर लग्न के जातक इस रोग से अधिक पीड़ित होते हैं ।
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