Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 153
________________ १५२ ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ है । रत्न में किसी वस्तु या बुलबुले आदि उपस्थित होने से भी पारदर्शिता प्रभावित होती है । रत्न में शक्तिशाली अवशोषण शक्ति होने से भी प्रकाश मार्ग बाधित होता है। छोटे-छोटे चपटे या रेशेदार कण भी रत्नों की पारदर्शिता को प्रभावित करते हैं। कैलसीडोनी, फीरोजा व लाजवर्त अपारदर्शी हैं क्योंकि इनमें प्रकाश अन्तिम रूप से अवशोषित या प्रतिबिम्बित होने से पूर्व कई बार अवशोषित या प्रतिबिम्बित होता है । कोई भी रत्न पारदर्शी तभी कहा जा सकता है जब बिना किसी अवरोध के प्रकाश उसमें से स्पष्ट गुजर जाये । प्रकाश तथा रंगों का प्रभाव कुछ रत्नों पर तेज रोशनी या रंग का प्रभाव इस प्रकार दिखायी देता है जो उनकी रासायनिक बनावट से सम्बन्धित नहीं होता और न ही उनमें प्राप्त अशुद्धियों से ऐसी कोई रंगीन आभा सम्बन्ध रखती है । ये प्रभाव केवल प्रकाश के अवरोध के कारण उत्पन्न होते हैं । - बिल्लौरीपन – जब किसी रत्न को कैबोकोण (गुम्बदनुमा) तराशा जाता है तो उस रत्न के भीतर से परावर्तित होता हुआ प्रकाश बिल्ली की आँख जैसा प्रतीत होता है । दूधियापन - मूनस्टोन श्रेणी के रत्नों में जिनकी बनावट गुम्बदनुमा होती है, दूधियापन की चमक साफ झलकती है। झिलमिलाहट - रत्नों के ठोस पृष्ठभाग पर झिलमिलाहट युक्त बहुरंगी प्रकाश नजर आता है । इन्द्रधनुषीपन - इस प्रकार के रत्नों के अन्दर दरारों और बेमेल लहरों में अगर रोशनी डालें तो वह कई कोणों में विभक्त होकर इन्द्रधनुष जैसी आभा बिखेर जाती है । दोगलापन - लेब्रेडोराइट और स्पेक्ट्रोलाइट किस्म के रत्नों में धात्विक चमक पायी जाती है। इन रत्नों में मुख्यतः आभा हरे व नीले रंग में होती है । परन्तु उसका समस्त दृश्य-पटल रंग-बिरंगा होना चाहिये । ---- ओपल रंगी- - आम तौर पर नीली सूक्ष्म तरंगों के कारण ही सामान्य ओपल रत्नों में नीली या मुक्ताश आभा दिखायी पड़ती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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