Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar
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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान *
१३५ नई-नई सुन्दर डिजाइनों के आभूषण बनाने के लिए बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ हैं। हीरों को काटने पर हीरों के जो छोटे-छोटे टुकड़े और कण या चूर्ण बचते हैं वे विभिन्न औद्योगिक कार्यों में प्रयोग किए जाते हैं इसलिए ऐसे हीरों को इन्डस्ट्रियल डायमण्ड कहते हैं।
आजकल कीमती पत्थरों को तराशने और डिजाइन बनाने का काम बिजली की शक्ति से विशेष प्रकार की मशीनों द्वारा किया जाता है। जो कार्य बहुत नजाकत चाहता है केवल उसे ही हाथों से किया जाता है। स्फटिक, राक क्रिस्टल तथा अन्य मूल्यवान पत्थर प्रायः जर्मनी में तराशे जाते हैं। जर्मनी के नगरों में ब्राजील, मैडागास्कर, श्रीलंका, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका, रूस, मैक्सिको, अमेरिका तथा अन्य देशों की खानों से निकलने वाले रत्नों की खरड़ समुद्री जहाजों द्वारा पहुँचती है। यहाँ का ईडर (Idar) नगर इस उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र है।
तराशे हुए भागों के नाम इस प्रकार होते हैं-टेबल, क्राउन, मेखला और क्यूलेट। ऊपरी सतह को टेबल कहते हैं, उसके नीचे बने हुए पहल क्राउन तथा उसके नीचे के जोड़ को जहाँ क्राउन फलक समाप्त होकर निचले फलक शुरू होते हैं, मेखला कहते हैं। तत्पश्चात् निचले फलक और उसके सबसे आखिरी सिरे को क्यूलेट कहते हैं । यह चौड़ा भी हो सकता है। रत्नों में प्रयोग होने वाली नई और पुरानी तराशें इस प्रकार हैं
डायमण्ड प्वॉइन्ट (Diamond Point)- इसमें प्राकृतिक ऑक्टोहेड्रल (Octohedral) मणियों को उनके प्राकृतिक रूप में ही तराश कर पॉलिश कर दिया जाता था।
कैबोकोन तराश (Cabochon Cut)-यह अति प्राचीन तराश है। काफी समय तक यह रंगीन पत्थरों की एक अति लोकप्रिय तराश रही है, परन्तु आज यह केवल कुछ ही रत्नों जैसे-अल्मेन्डाइन गार्नेट (Carbuncle, AImandine Garnet), लहसुनिया, स्टार स्टोन्ज, अपारदर्शक और अर्द्धपारदर्शक रत्नों तक ही सीमित होकर रह गई है। वैसे अब भी कभी-कभार यह माणिक्य व पन्ने के लिए प्रयोग की जाती है।
कैबोकोन तराश का मुख्य रूप शिखर पर से गोल-उन्नतोदर (Convex),
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