________________
रत्नों के कटाव
रत्नों की सुन्दरता को बढ़ाने तथा उनकी त्रुटियों को दूर करने के लिए उन्हें तराशा और पॉलिश किया जाता है। रत्नों को तराशने व सुन्दर डिजाइनों में परिवर्तित करने की कला को आर्ट ऑफ लैपीडरी (Art of Lapidary) कहते हैं।
कहते हैं सर्वप्रथम रत्नों को पहलों (Facets) में तराशने का आविष्कार केवल हीरे के लिए ही किया गया था और सबसे पहले संसार के सामने इस विधि का परिचय पन्द्रहवीं शताब्दी में लुईस डी बेरग्येम (Louis De Berguem) ने कराया था। यद्यपि भारत में सबसे पहले हीरा भारत ही में ज्ञात हुआ था। हीरों को काटने और तराशने का काम दूसरे हीरे या हीरे के चूर्ण द्वारा एक घूमते हुए लोहे के पहिए या प्लेट पर किया जाता है। तराशने के साथ ही साथ हीरा पॉलिश भी होता चला जाता है।
पत्थरों को काटने, तराशने तथा उनके आभूषण बनाने में हालैंड, बेल्जियम, जर्मनी, इसराइल और फ्रांस के शिल्पकार अत्यन्त निपुण और दक्ष होते हैं। भारत में यह कार्य जयपुर, सूरत और बम्बई में होता है। चीन
और श्रीलंका में भी अपने देश के फैशन के अनुसार रत्नों को तराशने वाले विशेषज्ञ पर्याप्त संख्या में हैं।
चीन मरगज की ज्यूलरी का सबसे बड़ा केन्द्र है। समस्त कीमती, पत्थरों को खानों से निकालने के पश्चात् बहुत परिश्रम करने और पॉलिश करने के पश्चात् ही आभूषणों में प्रयोग करने के योग्य बनाकर लाखों रुपयों में बेचा जाता है। यूरोप में ऐन्टवर्प और एमस्टरडम हीरों के व्यापार के बहुत बड़े केन्द्र हैं। बेल्जियम, हालैण्ड और इसराइल में हीरे काटने और उनसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org