Book Title: Ratna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Author(s): Kapil Mohan
Publisher: Randhir Prakashan Haridwar

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Page 133
________________ १३२ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * जल में डूबता नहीं तथा न ही अग्नि का भय होता है। एमनी के संग दो प्रकार के होते हैं-(१) संग हकीक (२) संग हदीद। संग हकीक-यह काला, पीला, सफेद, सुर्ख रंग का चिकना, नर्म पटनी और चमकदार, छींट समान बिन्दु से बहुत रंग का होता है। जो तिब्बत, खम्भात, सिन्धु महानदी, नर्मदा व ईरान में पाया जाता है। संग हदीद-यह खाकी, मटिया रंग का चिकना होता है। जिस पर एक दो नेत्र चिन्ह होते हैं। यह सिन्धु, नर्मदा, बगदाद आदि स्थानों पर पाया जाता है। भीष्मक मणि भीष्मक मणि के स्वामी कामदेव हैं। यह काली, मधु समान, नरम दही और फिटकरी के मिश्रण से बने रंग जैसी होती है। इसकी उत्पत्ति विन्ध्य, आबू, नर्मदा, ताप्ती नदियों तथा गण्डक, सोन, गिरनार, काश्मीर, नेपाल, त्रिकूट, रामेश्वर हिमालय आदि स्थानों में होती है। साफ चिकनी, सुकान्ति अच्छे घाट और रंग की भीष्मकमणि बहत से रोग, गर्मी, घबराहट आदि को दूर करती है। इसे धारण करने से विष, तन्त्र-मन्त्र आदि का असर नहीं होता है तथा सब कार्य सिद्ध होते हैं। भीष्मक मणि के संग दो प्रकार के होते हैं-(१) संग मरमर (२) संग भूरा। संग मरमर-यह संग नीला, सफेद, काला चिकना और चमकदार होता है। जो ढूंढार देश में पाया जाता है। इससे मकान, महल, मन्दिर आदि बनते हैं तथा देवमूर्ति बनती है। संग भूरा-यह संग सफेद अबरखी और काले रंग का होता है। यह संग भी ढूंढार देश में पाया जाता है। यह भी मकान आदि बनाने के काम आता है तथा बहुत शुभ फल देने वाला संग है। इस तरह यहाँ तक इक्कीस उपरत्न और उनके कतिपय संगों का वर्णन किया गया। प्रकरण के आरम्भ में कहा जा चुका है कि इन उपरत्नों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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