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___★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ मारते हैं तथा इन चमकीले रंगीन पत्थरों को हम चूमते हैं। त्वचा से
बराबर स्पर्श करने पर ये खाल को छील देंगे व जगह सफेद बना देंगे। १०. निष्कर्ष ये है कि नग का नीचे से खुला रहना आवश्यक है। नग का
कार्य किरणों को खींचकर त्वचा के सूक्ष्म छिद्रों द्वारा शरीर के अन्दर भेजना है क्योंकि नग के स्पर्श करने पर दबाव से छिद्र बन्द होकर भर
जाते हैं जिससे त्वचा सफेद पड़ जाती है। ११. रत्न चिकित्सा एक प्रकार की किरण व रंग चिकित्सा है। रत्न को जब
हम वार-समय-दिन व पूजानुसार पहनते हैं तो वे असर दिखाते हैं अर्थात् वे किरणों को चूस करके त्वचा के सूक्ष्म छिद्रों से नसों द्वारा हृदय में, मस्तिष्क में व पूरे शरीर में पहुँचाते हैं। जिसके द्वारा जिस रंग
की हमें जरूरत होती है वे हमें प्राप्त होते रहते हैं। १२. वैसे तो बढ़िया किस्म के नग आभूषणों में प्रयोग होते हैं । रत्नों का ८०
प्रतिशत प्रयोग आभूषणों में होता है। १५ प्रतिशत राशि में तथा शेष ५ प्रतिशत दवाइयों व उद्योगों में होता है परन्तु हीरे का प्रयोग राशि में १ प्रतिशत, ज्वैलरी में २४ प्रतिशत, शेष ७५ प्रतिशत औद्योगिक क्षेत्र में
होता है। १३. हर चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती। इसी तरह लोगों की यह
धारणा विशेषतः कुछ धूर्तों के द्वारा फैलाई गई कि केवल जयपुर में ही नग सस्ते व असली मिल जाएँगे। यदि हम इन बातों को सच मानकर चलें तो एयरकंडीशन शोरूम वाले तो साधारण दुकान में आ जाएँगे व छोटे-छोटे दुकानदार यह कार्य बन्द कर देंगे। परन्तु यह एक झूठा भ्रम है कि किसी वस्तु का जहाँ स्रोत होता है वहाँ के व्यापारियों को तो फायदा पहुँचता है पर लगभग उपभोक्ता को नहीं। इसका कारण यह है कि वहाँ के व्यापारी को दूसरा व्यापारी कम लाभ देता है जबकि उपभोक्ता वस्तु असली व सस्ती के चक्कर में जाकर वहाँ लगभग पूरे दाम देता है या कभी-कभी नकली चीज भी ले आता है या फिर वस्तु
दिखाई कोई जाती है और दी कोई जाती है। १४. धूर्त लोग आपको यह भी कहते हैं जब आप दूसरी जगह से नग
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