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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★
१२३ के समान पीला होता है। यह हीरे के समान चमकती है। इसके धारण करने से शारीरिक सुख, सम्पत्ति तथा स्त्री का पूर्ण रूप से सुख मिलता है।
सूर्य आर्द्रा नक्षत्र और चन्द्र मेष, सिंह, तुला, कुम्भ धनु या मिथुन का हो। उस समय यह मणि रूई में लपेट कर पूर्व दिशा में जल में डुबो कर रखें। वृषभ, कर्क, मीन, कन्या, वृश्चिक और मकर राशि पर चन्द्र होने पर पश्चिम में रखें तथा इसका विधिवत् पूजन करें। इससे पाँच दिन के अन्दर वर्षा जरूर होगी और अन्न सस्ता होगा। यदि दस दिन तक बरसता रहे तो धान्य भाव तेज होगा। यदि बीस दिन तक वर्षा होगी तो अकाल पड़ सकता है। जितनी ज्यादा वर्षा होगी उतनी ही ज्यादा हानि होगी। इस मणि के स्वामी इन्द्रदेव हैं। इसे इन्द्र का वरदान है कि जो इस मणि को धारण करेगा वह सदा विजयी और प्रसन्न रहेगा। शास्त्रों में इससे वर्षा कराने का बहुत विस्तृत विधान है।
भीष्मक या अमृतमणि के चार संग होते हैं-(१) संग सेलखड़ी (२) संग जराहत (३) संग कचिया (४) संग वदनी।
संग सेलखड़ी-यह मटियायी रंग का संग नरम और चिकनाई लिये होता है। जो पूर्व और पश्चिम के देशों में पैदा होता है।
संग जराहत-यह सफेद, चिकना और बहुत नरम होता है जो पूर्व विन्ध्य और हिमालय में पैदा होता है। यह ज्यादातर औषिधियों के रस में डाला जाता है। यह संग दाँतों की जड़ों को मजबूत और मुँह की दुर्गन्ध दूर करता है।
__ संग कचिया-यह सफेद रंग का चिकनाई लिये होता है तथा चमकदार भी। इसकी खान पहाड़ों पर होती है।
संग वदनी-यह सफेद रंग का और पीले रंग का केले के पत्ते के समान चमकदार चिकना और हल्का होता है। यह मणि खानदेश, विन्ध्य हिमालय आदि में पैदा होता है।
ओपल मणि या उपलक (Opal) ओपल या उपलक मणि बहुत विचित्र रंग की होती है। इसका स्वामी
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