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रत्नों को धारण करने का वैदिक सिद्धांत
सूर्य रत्न 'माणिक्य' की धारण विधि
माणिक्य धारण करने के लिए ३ रत्ती से अधिक वजन के माणिक्य को ५ रत्ती से अधिक वजन वाली ताँबे मिश्रित स्वर्ण की अंगूठी में जड़वाना चाहिए। जो सोने की अंगूठी बनवाने में समर्थ न हों उन्हें ताँबें की ही अंगूठी बनवानी चाहिए। क्योंकि सूर्य का प्रतिनिधि धातु ताँबा ही है। माणिक्य के अभाव में लालड़ी आदि किसी अन्य उपरत्न को जड़वाना चाहिए। अंगूठी का मध्य भाग छिद्रयुक्त होना चाहिए। जिससे रत्न का निचला भाग उँगली की त्वचा से स्पर्श करता रहे । दायें हाथ की अनामिका उँगली को सूर्य की उँगली मानते हैं।
अंगूठी रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र या कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी एवं उत्तराषाढ़ नक्षत्र में दिन में प्रात: नौ बजे से बारह बजे के मध्य अँगूठी तैयार करानी चाहिए। अँगूठी तैयार हो जाने पर उसी दिन उपरोक्त नक्षत्र में ही अथवा अन्य किसी रविवार को पुष्य कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी या उत्तराषाढ़ नक्षत्र में प्रातः नौ बजे से बारह बजे के मध्य रत्न जड़ित अंगूठी को यथाविधि पूजन करने के पश्चात् ही धारण करना चाहिये।
पूजन विधि-पाँच तोले चाँदी का एक सूर्यासन बनवाते हैं तथा सवा दो ग्राम वजन के सोने की सूर्य की प्रतिमा बनवाते हैं। मूर्ति को आसन में प्रतिष्ठित कर उसके पास ही रत्न जड़ित अंगूठी को रखते हैं, तत्पश्चात् सूर्य की प्रतिमा व अंगूठी को षोडशोपचार पूजन कर सूर्य के मन्त्र द्वारा अँगूठी को अभिमन्त्रित करते हैं।
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