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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * मध्यमा अँगुली में धारण कर पूर्णाहुति देनी चाहिये। इसके बाद शनियन्त्र, काले रंग की गाय, भैंस, सरसों का तेल, तेल, तिल, पान, लोहा तथा काले रंग का वस्त्र यथाशक्ति दक्षिणा के साथ कर्मकाण्डी ब्राह्मण को दान देना चाहिये तथा संध्या समय में दीप, बलि, भैरव पूजन एवं दीप दान आदि कर्म करना चाहिये। इस विधि से धारण की गई अँगूठी शनि के अनिष्ट प्रभाव को दूर करती है।
राहु रत्न 'गोमेद' की धारण विधि
अंगूठी बनवाने के लिये गोमेद ४ रत्ती से अधिक वजन का होना चाहिये। किन्तु ६, ७, १०, ११, १३ अथवा १६ कैरेट का गोमेद धारण नहीं करना चाहिये। अंगूठी पंचधातु या लोहे की होनी चाहिये। जिस दिन भी स्वाति, शतभिषा अथवा आर्द्रा नक्षत्र हो उस दिन प्रातः सूर्योदय से १० बजे तक बनवानी चाहिये। ११ बजे के बाद राहु यज्ञ करवाना चाहिये। इसके लिये सर्वप्रथम राहु का स्थण्डल बनाकर उस पर ११ तोले वजन के चाँदीपत्तर पर खुदा राहु यंत्र जिसमें कि गोमेद का एक टुकड़ा हो स्थापित करना चाहिये। फिर उस पर अंगूठी रखकर विधिवत् पूजा-अर्चना कर उसमें प्राणप्रतिष्ठा करनी चाहिये। फिर राहु मन्त्र “ॐ क्रों क्रीं हुँ हुँ टं टंक धारिणै राहतै स्वाहा" मन्त्र का उच्चारण करते हुये १,००० बार आहुति देनी चाहिये। तत्पश्चात् मध्याह्न काल में योगिनी चक्र बनाकर दीप दान करना चाहिये तथा "ॐ कयानश्चित्र आभुवदुती सदा वृधः सखा। कथाशचिष्ठया कृतः। श्री राहवे नमः।" मन्त्र का उत्तम कर्मकाण्डी ब्राह्मण से १८,००० की संख्या में जाप करवाना चाहिये, फिर अपराह्न साढ़े तीन (३.३०) बजे के लगभग अँगूठी को अपने बायें हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिये। इसके बाद राहु यन्त्र, नीले रंग का वस्त्र, कम्बल, तिल, तैल, लोहा, अभ्रक को यथाशक्ति दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिये।
केतु रत्न वैदूर्य' (लहसुनिया) कीधारण विधि
अंगूठी बनवाने के लिये वैदूर्य मणि भी ५ रत्ती से कम वजन की नहीं
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