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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★
५५ बृहस्पतिवार को पुष्य नक्षत्र में प्रातः सूर्योदय से ११ बजे के बीच पुखराज की अंगूठी बनवानी चाहिये तथा ११ बजे तक ही तैयार हो जानी चाहिये। चाँदी के पत्तर पर खुदा गुरू यंत्र जिसमें मध्य में एक पुखराज का नग जड़ा हो उसे स्थंडल पर रखकर चने की दाल द्वारा अष्ट मण्डल का निर्माण करना चाहिये। इसके ऊपर जल से परिपूर्ण कलश स्थापित करना चाहिये, फिर उसे अभिषेक कर "ॐ बृहस्पतेऽअति यदर्योऽअहथुिमद्विभाति क्रतुमज्जुनेषु। यद्दीदयच्छऽऋतु प्रजाततदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। श्री गुरूवे नमः" का यथाशक्ति जाप करें। इसके बाद "ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नमः" नामक मन्त्र का उच्चारण करते हुये ४,५०० आहुति देकर हवन करना चाहिये। फिर अंगूठी में बृहस्पति की प्राण प्रतिष्ठा कर शुभ मुहूर्त में दायें हाथ की तर्जनी अथवा अनामिका अँगुली में धारण करना चाहिये। अंगूठी धारण करने के बाद कर्मकाण्ड कराने वाले ब्राह्मण को स्वर्ण, पुखराज, हल्दी, चने की दाल, पीला पुष्प, शक्कर, पीला वस्त्र तथा गुरू यन्त्र को यथाशक्ति दक्षिणा के साथ दान करना चाहिये।
इस प्रकार विधिवत् धारण की गयी अंगूठी गुरूकृत अनिष्ट प्रभाव को नष्ट करती है।
शुक्र रत्न हीरा' की धारण विधि
अँगूठी में जड़वाने के लिये हीरा १ रत्ती से कम वजन का नहीं होना चाहिये। १ रत्ती से जितना अधिक वजन का हीरा होगा उतना अधिक शुभकारी होगा तथा अंगूठी भी सोने की होनी चाहिये और ७ रत्ती से कम नहीं होनी चाहिये। सोने के अलावा और कोई अन्य धातु नहीं होनी चाहिये।
हीरे की अंगूठी शुक्रवार के दिन भरणी, पूर्वाफाल्गुनी अथवा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में ही या जब शुक्र, वृष, तुला या मीन राशि पर हो तब प्रातः सूर्योदय से ११ बजे के मध्य तैयार करवानी चाहिये। इसके बाद यज्ञमण्डल का निर्माण कर उसमें पंचकोणाकार शुक्रस्थण्डल बनाना चाहिये। ७ तोले वजन के चाँदी के पत्तर पर खुदा शुक्र यन्त्र जिसमें एक छोटा सा हीरा जड़ा हो स्थण्डल पर स्थापित करना चाहिये। उसी जगह हीरा जड़ित स्वर्ण अंगूठी
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