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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान *
गुण और वर्तनांक वाले संशिलष्ट रत्नों को उसी पाउडर से बनाया जाता था जिससे असली रत्न बने होते थे। पाउडर अत्यधिक उच्च तापमान पर भट्टी पर पिघलाया जाता था। इतने तापमान पर जब पाउडर पिघलता था तो उसकी बूंदें नीचे गिरने पर गोल या लम्बे आकार के पारदर्शी रत्नों जैसी संरचना ग्रहण कर लेती थीं। इन संशिलष्ट रत्नों की आन्तरिक रचना प्राकृतिक और पारदर्शी रत्नों जैसे होती है। बाहरी सतह की चमक को छोड़कर रत्न के भौतिक गुण भी असली रत्न से मिलते-जुलते थे। दो सौ से पाँच सौ कैरेट वजनी रत्नों को बनाने में मात्र तीन-चार घण्टे लगते थे। फिर तो अच्छे कारीगरों द्वारा इन रत्नों पर चोट या कोई आन्तरिक दबाव दिये बिना, छोटेछोटे रत्न काटकर तैयार किये जाते थे।
सन् १९५५ में अमेरिका और स्वीडन में संश्लिष्ट बहत्तर हीरों का निर्माण सफलतापूर्वक किया गया है। जिसमें उच्चताप प्रणाली की सहायता लेकर मानव निर्मित हीरे बनाये गये। सन् १९७० में सभी रत्नीय गुणों से युक्त और बड़े साइज की हीरों का उत्पादन हुआ। परन्तु इनकी उत्पादन लागत इतनी ज्यादा थी कि व्यावसायिक तौर पर हीरों का उत्पादन स्थगित कर दिया गया। परन्तु संश्लिष्ट हीरे औद्योगिक तथा वैज्ञानिक कार्यों के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध हुए। आज अनेक संश्लिष्ट रत्न ऐसे हैं जो भूगर्भ से पैदा नहीं होते या प्राकृतिक रूप से जिनका कोई सम्बन्ध नहीं है। फिर भी बाजार में इनका भाव ऊँची कीमतों में हैं क्योंकि इनकी चमक असली रत्नों जैसी ही होती है।
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