________________
| दाँतों से
★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान *
७१ धारण करने के लिये प्रस्तुत है
रत्न उत्पत्ति का अंग उपचार प्रयोग १. हीरा | हड्डी से हड्डी के रोगों को नष्ट करता है। २. मोती
| पायारिया आदि रोगनाशक। ३. माणिक्य | रक्त से रक्त-रोगनाशक, रक्तवर्धक। ४. पन्ना
| पित्त से पित्त प्रकोप में लाभप्रद। ५. इन्दुनील | नेत्रों से नेत्र रोग के लिये हितकारी। ६. लहसुनिया गर्जन से स्वरभंग में लाभप्रद। ७. पुखराज खाल से कुष्ठादि चर्मरोग में लाभकारी। ८. वैक्रान्त नाखून से नख-दोष हारक। ९. गोमेद | वीर्य से प्रेम आदि, वीर्य विकार नाशिक। १०. लाजवंति | तेज से
पाण्डु रोग में उपयोगी, नेत्र ज्योतिप्रद। ११. अकीक | रूप से कान्तिप्रद, सिद्धि आदि में उपकारक। १२. स्फटिक | मेद, चर्बी से कार्पा, क्षय, प्लीहा, आदि में उपयोगी।
ग्रहों के अनुसार नवरत्नों को इस प्रकार धारण किया जाता हैग्रह
| ग्रह
रल माणिक्य
चन्द्र
मोती मंगल प्रवाल
बुध
पन्ना गुरु पुखराज
हीरा नीलम
राहु-केतु लाजवन्ति राहु लहसुनिया केतु गोमेद
रत्न
सूर्य
शुक्र
शनि
★★
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org