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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★
सूर्य मन्त्र - ॐ श्री कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मतम्मर्त्यञ्चहिरण्येन सविता रक्षेना देवीयाति भुवनानि पश्यन् ॥ श्री सूर्याय नमः ॥
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तत्पश्चात् अँगूठी के रत्न में सूर्य की प्राण-प्रतिष्ठा सुयोग्य कर्मकाण्डी विद्वान् द्वारा करानी चाहिये । पूजन प्राण-प्रतिष्ठा, हवन आदि कर्म समाप्त होने के बाद ब्राह्मण “ ॐ ह्रीं हं सः सूर्याय नमः स्वाहा " मंत्र द्वारा अँगूठी व यजमान को अभिषिक्त कर यजमान के दायें हाथ की अनामिका अँगुली में अँगूठी को पहना दें।
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तत्पश्चात् यजमान सूर्यासन, सूर्य की मूर्ति तथा माणिक्य या इसके उपरत्न का एक छोटा सा नग यथाशक्ति दक्षिणा के साथ उस कर्मकाण्डी ब्राह्मण को दान देना चाहिये । जो व्यक्ति चाँदी का सूर्यासन व सूर्य की मूर्ति की प्रतिमा बनवाने में असमर्थ हों उन्हें चाहिये रत्न जड़ित अँगूठी शुक्लपक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करें। धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगा जल में डूबोकर रखना चाहिये। तत्पश्चात शुद्ध जल से स्नान कर पुष्प, चन्दन और धूपबत्ती से पूजन कर निम्न मन्त्र का सात हजार बार (७,००० बार जाप करना चाहिये ।
मन्त्र - ॐ घृणिः सूर्याय नमः ।
फिर इस अँगूठी को दाहिने हाथ की अनामिका अंगूली में पहनना चाहिये ।
उपरोक्त विधि से धारण की गई सूर्य रत्न जड़ित अँगूठी सूर्य के द्वारा उत्पन्न अनिष्ट प्रभाव को नष्ट कर मनोकामना को पूर्ण करती है तथा सुख सम्पत्ति आदि की वृद्धि होती है।
चन्द्र रत्न 'मोती' की धारण विधि
मोती ४ रत्ती का होना चाहिये तथा उसे २, ४, ६, या ११ रत्ती के वजन वाली चाँदी की अँगूठी में जड़वाना चाहिये। मोती को चाँदी के अतिरिक्त अन्य किसी भी धातु में नहीं जड़वाना चाहिये । अँगूठी को बायें हाथ की तर्जनी या कनिष्ठिका अँगुली में पहननी चाहिये तथा अँगूठी में मोती इस
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