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रत्नों के रंगों का हमारे जीवन से सम्बन्ध
रंगों का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है, जो पूरे ब्रह्माण्ड में पाया जाता है। बिना रंगों व किरणों के हम इस संसार की कल्पना भी नहीं कर सके। सर आइजक न्यूटन जब २३ वर्ष के थे तब उन्होंने सूर्य की सफेद-सी दीखने वाली रोशनी को ग्लास प्रिज्म में से गुजारा तो पाया कि दूसरी तरफ से सात अलग-अलग रंग के प्रकाश निकल रहे थे। साबुन का बुलबुला व इन्द्रधनुष भी सात रंग दर्शाते हैं। लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैंगनी।
ये सात रंग मुख्य हैं। बाकी सब मिश्रित (गौण) हैं, जैसे-काला, सलेटी, मैहरून, भूरा, परपल, लैवेण्डर आदि। इन सभी रंगों का उद्गम स्थान सूर्य है। सूर्य की किरणों के बिना पृथ्वी वर जीव नहीं रह सकता है। हमारे शरीर में भी सूर्य की सात किरणें सम्मिलित हैं। मानव-शरीर कोशिका व कोशिका-तन्त्र का जाल है। प्रत्येक कोशिका अलग-अलग रंगों से बनी है। हम इन्हीं सात रंगों से पैदा होते हैं, जीते हैं और बढ़ते हैं। यही रंग हमारे शरीर को स्वस्थ व सन्तुलित बनाए रखने में सहायक हैं। मानव-शरीर का रंग भी कम या ज्यादा अर्थात् गड़बड़ा जाए तो तरह-तरह की बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। इन रंगों की पूर्ति के लिए कई तरीके हैं परन्तु प्राचीन समय से ही रत्नों को रंगों की पूर्ति का सीधा व सरल तरीका माना है, जिनका वर्णन निम्नलिखित है
लाल रंग (संचालक-सूर्य) यह अग्नि, ताकत एवं धैर्य का प्रतीक है। इसका रंग लड़ाई-झगड़ा या
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