Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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सिद्धान्त एवं चर्चा]
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२६. प्रति नं. ४-१त्र संख्या १७२ | साज-१३४८ इस । लेखन काल- | अपूर्ण | पन नं.६६२ । विशेष – हिन्दी अर्थ सहित है। आगे के पत्र नहीं है ।
२७. प्रति नं०५-पत्र सल्या-४० | साइज-३०x४३ १५ । लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन में० ६.४ ।
८. प्रति नं. ६-पत्र ५.२पा-११ । साइम-११४४४ ६३ । लेखन काल-X । पूर्ण । बटन नं ११ ।
शप-निदा ..... हैं ,
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२६. प्रति नं.-र संख्या-: ४. ५:१ | साइज-२.४७३, म | X । लेखा कहल-सं. १९ । मार्ण । टन ०६५।
विशेष---२४६ पे २४३, ३० से ४४०, ४८० से ५२८ तक पत्र नह! हैं ।
गांत गैस सामा ने प्रतिलिपि की थी । सं. १७६६ में महाराजा जयसिंह के शासन काल में सवाई जयपुर में जोधराज पाटोदी द्वार। उस नि.मत्त ( बनाये हुए) ऋषभदेव चैयालय में गुलाबचन्द गोदीका में प्रतिलिपि करता कर इस पंच को भेंट किया था। केशव को कटक वृत्ति के माधार पर संस्कृती
शस्ति--संवासरे नव-नारद मुनि ते १७६६ भाद्रपदमासे शुक्लपते पंचमोतिथी सबाईकयपुरनाम्नि नगरे महाराजाधिराज पवाई जयसिहराव्यपवर्तमाने पायेदी गोलीय साई जोधराज कारित श्री ऋषभदेव चैत्य लय । श्री मूलधि नधासाय चलाःकारनामों सरस्वती कुन्दकुदानाधिो भडारका झन् ४ी जान कीर्तिदेवास्त-पर्ट प्रमाणपत्र दिन प्रतिभाधारक मारक जन् श्री देवेन्द्र के.सिंदेवा । तपधारक , कुमतिनिकारक केनुमोनिकारक भवमय-भंजन महाराधिनत भी महेन्द्रकीर्ति देवासाय लाया शोपन भाँवसा गोगामध्ये मोदीके'त गाना प्रसिद्धा श्रेग्नजित की लूणाकराव्यास्तापुत्र थी भगवदर्भ प्रकरजकारणापर साह जो रूएनन्द जी करतः पुत्रः राद्धांतवितरणेचनितानादिमिथ्या वनिकर गिर जोयक्ति श्री गुलाब चन्द ण इन नोमट्टमार शास्त्र लिखाध्य महारक जिन श्री महेन्द्र पोतिये परत ।।
३०. गोमट्टसार भाषा-पंटोडरमता जी । लब्धिसार क्षपणासार सहित ) पत्र संख्या-१०५.३ । साइ7-2०४६ सश्च 1 मामा-हिन्दी । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-स. ११ माघ सुदी ५ । लेखन काल-x | पूमो । वटन नं. ७१२
विशेष-कई प्रतियों का सम्मिश्रण है। बहुत से पत्र स्वयं पं. वरमलजी के हाथ में लिखे प्रतीत होते हैं। भंस का विस्तार ६.,००० श्लोक प्रमाण है।
३१. पति i०२-पत्र संख्या-११०४ : साइन-१५४ इञ्च । येखन काल-सं० १८६. पाच युदी १२ । अपूर्ण । वेष्टन नं०७१६ ।