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जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार......3 एक प्रकारी पूजा ___ जिनपूजा विधि संग्रह के अनुसार अधिक सामग्री के अभाव में केवल अक्षतों से स्वस्तिक करना एक प्रकार की जिनपूजा है।12 द्विविध प्रकारी पूजा
विंशतिविंशिका'3, धर्मरत्न करंडक14, आनंदघन चौवीसी15, भगवती आराधना16 आदि में पूजा के दो भेदों की चर्चा की गई है। इन सभी के अनुसार जिनपूजा के द्रव्यपूजा और भावपूजा ऐसे दो भेद किए गए हैं।
___ 1. द्रव्यपूजा- जो पूजा द्रव्य के आश्रित है, वह द्रव्यपूजा कहलाती है। पंचाशक प्रकरण के अनुसार भावस्तव के लिए अनुरागपूर्वक जिन मन्दिर या जिनप्रतिमा का निर्माण करना द्रव्यस्तव है।17 भगवती आराधना में अरिहंत आदि के उद्देश्य से गंध, पुष्प, धूप, अक्षत आदि का समर्पण करना द्रव्यपूजा है तथा उठकर खड़े होना, तीन प्रदक्षिणा देना, नमस्कार करना आदि शारीरिक क्रियाएँ तथा वचनों से अरिहंत आदि के गुणों की स्तवना करना भी द्रव्य पूजा है।18 वसुनन्दि श्रावकाचार के अनुसार जल आदि द्रव्यों से प्रतिमा आदि की जो पूजा की जाती है उसे द्रव्यपूजा जानना चाहिए।19
समाहारत: द्रव्य अर्पण करके की जाने वाली पूजा द्रव्यपूजा है।
2. भावपूजा- स्तुति-स्तोत्र आदि, जो भावों के आश्रित हैं, उसे भावपूजा कहते हैं।20 पंचाशक प्रकरण के अनुसार मन, वचन, काय से विरक्त रहना या मनोभावों की शुद्धि रखना भावस्तव है।21 भगवती आराधना में अरिहंत आदि के गुणों का चिन्तन करने को भावपूजा बतलाया है।22 वसुनन्दि श्रावकाचार के मतानुसार परम भक्ति के साथ जिनेन्द्र भगवान के अनंत चतुष्टय आदि गुणों का कीर्तन करके जो त्रिकाल वंदना की जाती है उसे भावपूजा जानना चाहिए अथवा पंच नमोकार पदों के द्वारा अपनी शक्ति के अनुसार जाप करने एवं जिनेश्वर परमात्मा जिनेन्द्र के गुणगान को भावपूजन जानना चाहिए। चार प्रकार का ध्यान भी भावपूजा है।23 ___ सार रूप में यह कह सकते हैं कि मनोभावों की शुद्धि ही भावपूजा है तथा द्रव्यपूजा ही भावपूजा में हेतुभूत बनती है। जिनाज्ञा के विरुद्ध भौतिक सुखों की अपेक्षा से किये गए अनुष्ठान द्रव्यपूजा और भावपूजा दोनों में ही कारणभूत नहीं बनते।